अदरक की उन्नत खेती (Improved Cultivation of Ginger) खरीफ मौसम के लिए अच्छी है अदरक की खेती करने से आप जायद जैसा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। अगर आप अदरक की खेती करते हैं तो . आपको बहुत अच्छा लाभ मिलेगा.अब बात आती है अदरक की खेती कैसे करें? कौन सी किस्म का चयन करना चाहिए? कौन से उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए? क्योंकि फास्फोरस, पोटैशियम और कैल्शियम, ये पोषक तत्व अदरक की फसल के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। तो आपको अदरक की खेती कैसे करनी चाहिए? इस आर्टिकल में पूरी जानकारी विस्तार से दी गई है।
अदरक की महत्त्व(Importance of Ginger):-
सबसे पहले बात करते हैं अदरक के बारे में, अदरक एक कंदीय फसल है, जो मसाला श्रेणी में आता है और इसकी मांग 12 महीने लगातार बनी रहती है। भारतीय व्यंजनों में अदरक का स्वाद और औषधीय गुणों का खास स्थान है। सर्दी-जुकाम, पाचन क्रिया, और सूजन कम करने में अदरक का असरकारी इस्तेमाल होता है। इसलिए अदरक की खेती किसानों के लिए लाभदायक व्यवसाय बन सकती है।
अनुकूल जलवायु :-
अदरक की खेती (Ginger Cultivation)के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु उपयुकर रहती है, इसकी खेती 20°C से 30°C के तापमान में सबसे अच्छी मानी जाती है। वैसे अदरक बोन के समय अदरक की अंकुरण के लिए 20°C से 25°C का तापमान सही होता है।यदि तापमान 30°C से अधिक होती है ,तो अंकुरण को नुकसान पहुंच सकता है।
इसलिए अदरक लगाते समय इस बा को जरूर ध्यान रखना चाहिए। हाँ ,लेकिन अदरक की विकास के लिए 25°C से 30°C का तापमान उपयुक्त होता है।अब यदि अदरक की खेती के समय वर्षा की बात करें, तो अदरक को 1500 से 2000 मिलीमीटर वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।
वैसे मानसून की बारिश अदरक की खेती ( (Ginger Cultivation) के लिए अनुकूल होती है।अधिक वर्षा वाले क्षेत्र में जलभराव से बचाव के लिए अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी का होना आवश्यक है।
वैसे भारत में अदरक की खेती के लिए केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश,असम, सिक्किम, पश्चिम बंगाल,उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश अनुकूल क्षेत्र है।
उपयुक्त मिट्टी:
अगर आप अदरक की खेती (Ginger Cultivation) करना चाहते हैं और अदरक की अच्छी पैदावार लेना चाहते हैं, तो इसके लिए उपलब्ध भूमि दोमट भूमि, पीली दोमट भूमि यानी हल्की दोमट भूमि उपयुक्त होती है, जिसमें उत्पादन बहुत अच्छा होता है, बाकी आप सभी प्रकार की भूमि पर अदरक की खेती कर सकते हैं।
वैसे अदरक (Ginger) की अच्छी पैदावार के लिए भुरभुरी, दोमट और जल निकास वाली मिट्टी भी सबसे उपयुक्त होती है। क्योकि रेत, गाद और मिट्टी का मिश्रण, जो अदरक की वृद्धि के लिए आवश्यक पोषक तत्व और जल धारण क्षमता प्रदान करता है। वैसे अदरक की खेती ((Ginger Cultivation) के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 6.5 के बीच उपयुक्त रहती है।
उपयुक्त समय –
अदरक की बुआई के लिए 15 अप्रैल से 15 मई तक का समय बहुत ही अनुकूल माना जाता है।यह मौसम उन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है जहां मानसून की बारिश होती है। इस मौसम में, अदरक को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।
अदरक की उन्नत किस्में :-
आप अदरक की आप खेती कर रहे हैं, तो आपको कौन सी वैरायटी का चुनाव करना चाहिए। आप अपने क्षेत्र के वातावरण और मिट्टी के प्रकार के हिसाब से बेस्ट वैरायटी का चुनाव कर सकते है ।वैसे अदरक की बढ़िया उत्पादन देने वाली किस्मों में IISR वर्धा, IISR महिमा , सुप्रभा और सुरभी है।
वैसे सुरुचि वैरायटी को आप लगा सकते हैं, बाकी अपने राज्य क्लाइमेट्स कंडीशन के हिसाब से आप बेस्ट वैरायटी का चुनाव भी कर सकते है। बाकी अदरक की कुछ मूणत किस्मों, उनकी विशेषताओं, खेती की अवधि और उपज का विवरण दिया गया है:
1. सूर्य मुखी (Surya Mukhi):-
अदरक की यह किस्म हल्के पीले रंग के साथ मोटी और चिकनी प्रकंद वाली होती है। यह जीवाणु विल्ट और सड़न जैसे रोगों के प्रति प्रतिरोधी किस्म है।यह किस्म 8से 9 महीने में पककर तैयार हो जाती है। इसकी उपज प्रति एकड़ 80 से 100 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
2. सुप्रभा किस्म :-
अदरक की सुप्रभा किस्म हल्के पीले रंग के साथ मध्यम मोटे और चिकने प्रकंद की होती है। यह लीफ रोलर जैसे कीटों और सड़न जैसे रोगों के प्रति प्रतिरोधी किस्म है ।यह 7 से 8 महीने में पककर तैयार हो जाती है। इसकी उपज 70 से 80 क्विंटल प्रति एकड़ है।
3. आईआईएसआर महिमा (IISR Mahima):-
यह किस्म भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान (आईआईएसआर) द्वारा विकसित अदरक की किस्म है। इसे 2001 में रिलीज़ किया गया था।इसकी प्रकंद मोटा और भूरा रंग होता है। यह 200 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यह जड़-गाँठ सूत्रकृमि के प्रति प्रतिरोधी किस्म है। इसकी लगभग 9.20 टन प्रति एकड़ उपज होती है।
4. अदरक नादिया:-
यह किस्म 9 से 10 महीनों में पक जाती है। यह हल्के पीले रंग के साथ मोटी और चिकनी प्रकंद होती है। यह किस्म लीफ रोलर जैसे कीटों और सड़न जैसे रोगों के प्रति प्रतिरोधी है। इसकी 90 से 100 क्विंटल प्रति एकड़ उपज है।
बीजोपचार :-
अदरक को खेत में लगाने के लिए कंद को तोड़ा है काटा है या फिर थोड़ा बहुत जख्म है तो वहां से फंगस लग जाते हैं तो कंद गलन की समस्या हो सकती है इसीलिए कंदों को उपचार करना आवश्यक है।
गर्म पानी का उपचार:–
इसके लिए अदरक के कंदो को 50°C (122°F) के गर्म पानी में 10 मिनट के लिए डुबोएं। फिर बीजों को ठंडे पानी से धो लें और कंदों को छाया में सुखा लें।
जीवाणुनाशक उपचार:–
अदरक (Ginger) के प्रकंदों को जीवाणुनाशक से उपचार करने के लिए स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट या ट्राइकोडर्मा विरिडे जैसे जीवाणुनाशक का घोल बनाएं।कंदों को घोल में 30 मिनट के लिए भिगोएँ और बीजों को रोपण से पहले छाया में सुखा लें।
फफूंदनाशक उपचार:–
अदरक (Ginger) की कंदों की उपचार के लिए थायोफेनेट मिथाइल या कार्बेन्डाजिम जैसे फफूंदनाशक का घोल बनाएं। अदरक की कंदों को घोल में 30 मिनट के लिए भिगोएँ। कंद उपचार पश्चात् 40 मिनट तक छाव में सुखाएं।
इसके अतिरिक्त आप एवरगोल्ड (penflufen 13.28% + trifloxystrobin 13.28%) 2 मिली प्रति किलो कंद के अनुसार उपचार करें। इससे अंकुरण अच्छा होगा और कंद गलन की समस्या नाहीं आएगा।
संतुलित उर्वरक उपयोग –
अदरक की खेती (Cultivation of Ginger) के लिए 8 से 10 टन प्रति एकड़ सड़ी हुई गोबर की खाद का उपयोग कर सकते है ।इसके लिए गोबर की खाद को अच्छी तरह से सड़ी हुई होनी चाहिए। फिर अदरक की बोवाई बुवाई से पहले मिट्टी में अच्छी तरह मिला लें। क्योकि गोबर की खाद मिट्टी की उर्वरता, जल धारण करने की क्षमता और पोषक तत्वों की उपलब्धता को बढ़ाती है।
अब वही रासायिनक उर्वरक की बात करें तो नाइट्रोजन (N): 40 किलोग्राम प्रति एकड़,फास्फोरस (P) 20 किलोग्राम प्रति एकड़ और पोटेशियम (K) 40 किलोग्राम प्रति एकड़ का उपयोग कर सकते है। इस उर्वरक को 2 से 3 बार में डालें। पहली बार बुवाई से पहले और दूसरी -तीसरी बार बुवाई के 20 से 30 दिन बाद उपयोग कर सकते है।
इसके अतिरिक्त अदरक को सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे जस्ता, बोरॉन और मैंगनीज की भी आवश्यकता होती है। अपनी मिट्टी की आवश्यकतानुसार सूक्ष्म पोषक तत्वों का उपयोग करें।यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मिट्टी परीक्षण और अपनी मिट्टी की उर्वरता स्तर के आधार पर खाद और उर्वरकों की मात्रा का उपयोग करें।
अदरक (Ginger) को कीटों और रोगों से बचाव के नीम की खली का उपयोग 0.8 से 1.2 टन प्रति एकड़ की दर से किया जा सकता है। क्योकि नीम की खली में एंटी-फंगल और एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं जो मिट्टी को रोगाणुमुक्त रखने और फसल को कीटों और रोगों से बचाने में मदद करती हैं।
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सिंचाई :-
यदि आप 15 अप्रैल से 15 मई तक अदरक की खेती (Cultivation of Ginger) कर रहे हैं। तो इस समय गर्मी का मौसम होता है इसलिए शुरुआती दिनों में सिंचाई बहुत जरूरी होती है। लेकिन यदि आप खरीफ सीजन में बारिश के बाद ऊपर से अधिक सिंचाई करेंगे तो जाहिर सी बात है कि कंद सड़न की समस्या उत्पन्न हो सकती है.
इसलिए अगर हम ठीक से देख-देखकर सिंचाई करें तो कोई समस्या नहीं होगी. यदि वर्षा नहीं हो रही हो तो आवश्यकतानुसार 7 से 10 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए। इस फसल में सिंचाई स्प्रिंकलर से नहीं बल्कि फ्लैट सिंचाई या ड्रिप सिंचाई से करनी चाहिए.