Disease control in potato crop। आलू फसल में रोग प्रबंधन करें, अधिक उपज पाए !

किसान भाइयों आज हम आपके लिए आलू के प्रमुख रोग और उनके प्रबंधन के बारे में इस ब्लॉग पोस्ट चर्चा करेंगे । क्योकि अच्छी क्वालिटी और उपज प्राप्त करने के लिए आलू की फसल में रोग नियंत्रण ((Disease control in potato crop)नितांत आवश्यक है।हम सभी जानते हैं कि थोड़ी सी जागरूकता से हम फसल में होने वाले रोगों से उसको होने वाले नुकसान को कम कर सकते हैं। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि हमारे किसान भाइयों को आलू के प्रमुख रोगों और उनके उचित प्रबंधन की जानकारी अच्छी तरह से हो। इस ब्लॉग पोस्ट में हम आलू के प्रमुख रोगों के लक्षणों की जानकारी और उनसे बचाव के उपाय के बारे में जानकारी दे रहे हैं।

वैसे आलू की फसल (Potato Crop) हमारे देश में नगदी फसल के रूप में ली जाती है और आलू की खेती(Farming of potato) कर किसान अच्छी आमदनी भी कमा लेते है। लेकिन आलू की खेती में सही समय ,अनुशंसित उर्वरक उपयोग और समुचित सिंचाई व्यवस्था के साथ उचित समय पर रोगों का उचित प्रबंधन ( Disease control in potato crop) महत्वपूर्ण है। इसलिए आलू के रोगों (Potato diseases) को पहचान कर सही समय पर उचित प्रबंधन आवश्यक है।

आलू खेती में फसल रोग ग्रसित होने पर कम उपज के साथ आलू को क्वालिटी प्रभावित हो जाती है। जिससे मंडी में किसान भाईयों उचित कीमत नहीं मिल पाती है। इसलिए आलू की खेती (Farming of potato) में समय पर रोग प्रबंधन एक महत्वपूर्ण कारक है। तो आईये जानते है कौन कौन से रोग आलू की खेती को और उपज को प्रभावित करती है –

(1) Early blight disease in potato crop(अगेती अंगमारी रोग ):-

किसान भाइयों Potato Crop का सबसे पहला और प्रमुख रोग है, अगेती अंगमारी रोग । जिसको हम अंग्रेजी में अर्ली ब्लाइट भी कहते हैं।आलू की अगेती अंगमारी रोग एक सामान्य कवक रोग है। यह रोग अल्टरनेरिया सोलानी कवक के कारण आलू की पत्तियों पर फैलती है। यह रोग पत्तियों के साथ-साथ तनों और यहां तक कि कंदों को भी नुकसान पंहुचा सकती है।

How to control diseases in potato crop
How to control diseases in potato crop

रोग की पहचान : – अगेती अंगमारी रोग आलू की पत्तियों पर बुवाई के 3 से 4 सप्ताह बाद दिखाई देता है। रोग प्रारंभ में पुरानी पत्तियों पर छोटे, गहरे भूरे से काले छोटे-छोटे पूरी तरह बिखरे हुये धब्बों से होती है और बाद में संक्रमित पत्तियों का पीला पड़कर गिरना प्रारम्भ कर देती है।

पत्ते गिरने से प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया प्रभावित होती और कंद की उपज कम हो सकती है। इस प्रभावित कंद उभरे हुए बैंगनी बॉर्डर के साथ गहरे, गोलाकार से लेकर अनियमित, धंसे हुए धब्बे के रूप में दिखाई देती है।इस बीमारी से ग्रसित आलू के कंद में भूरे रंग के धब्बे अंदर तक फैले हुए दिखते हैं। यह कंद खाने योग्य नहीं रह जाते हैं।यहाँ आलू की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in potato crop) के कुछ उपाय दिए गए है।

रोकथाम के उपाए :-

  1. आलू की रोग रोधी किस्मों जैसे कुफरी ज्योति,कुफरी अलंकार, कुफरी सिंदूरूी और कुफरी जीवन का बोवाई करें।
  2. संक्रमित खेत में अच्छे फसल चक्र अपनाये।
  3. इस रोग से बचने के लिए बोने से पहले खेत की अच्छी तरह सफाई करें। संक्रमित पौधे के मलबे को हटा दें और नष्ट कर दें।
  4. लंबे समय तक पत्तियों को गीला रहने से बचाने के लिए सिंचाई का प्रबंध करें।
  5. बोनी के पहले आलू के कंधों को पायरा क्लोस रोबिन 5% और थायो मिथाइल 45% एफएस नामक दवा की 40 मिलीलीटर मात्रा को पानी में मिलाकर उपचारित कर बोएं।
  6. आलू की फसल को रोग से बचाव हेतु बायोवेल का एंटी स्ट्रेस बायो ट्रूपर की 500 ग्राम मात्रा को प्रति एकड़ की दर से 150 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

(2) पिछेती अंगमारी रोग :-

किसान भाइयों आलू का दूसरा प्रमुख रोग है पछेती अंगमारी या लेट ब्लाइट रोग। पिछेती अंगमारी रोग फाइटोफ्थोरा इनफ़ेस्टेन्स नामक फफूंद के कारण फैलता है। यह रोग का मैदानी और पहाड़ी दोनों क्षेत्रों में आलू की फसल पर दिखाई देते है। यह रोग विपरीत वातावरण में जब नमी व आर्द्रता अधिक होती है और कई दिनों तक वर्षा होती है, तब इस रोग का प्रकोप और अधिक बढ़ जाता है|

How to control diseases in potato crop
How to control diseases in potato crop

रोग की पहचान :-

यह रोग भी फफूंदी के कारण होता है।इस रोग का प्रकोप फूल आने तथा कन्द बनने के समय होता है। इस रोग के प्रकोप से पत्तियों की निचली सतहों पर सफेद रंग के गोले धब्बे बन जाते हैं, जो बाद में भूरे व काले रंग के हो जाते हैं| इस रोग के कारण पत्तियों के किनारों से झुलसन शुरू होती है जो अन्दर की ओर बढ़ती जाती है। वर्षा और बादल की स्थिति में रोग अत्यधिक तीव्रता से बढ़ता है और पूरी फसल को झुलसा देती है।

मात्र पांच दिनों के अंदर ही यह रोग पौधों की हरी पत्तियों को नष्ट कर देता है। पत्तियों की निचली सतहों पर सफेद रंग के गोले बन जाते हैं जो आगे चलकर भूरे और काले हो जाते हैं। पत्तियों के बीमार होने से आलू के कंदों का आकार छोटा हो जाता है और उत्पादन में भी कमी आ जाती है। इस रोग की विशेष पहचान पत्तियों के किनारे और चोटी के झुलसे हुए भाग को देखकर समझ में आता है। इस रोग के लक्षण आपको कंधों पर भी दिखाई देंगे जिसमें उनका गलन प्रारंभ हो जाता है। अगेती अंगमारी की तरह इस रोग के लिए भी बुआई के पहले खोद के निकाले गए रोगी कंदों को जलाकर नष्ट करना चाहिए।

नियंत्रण के उपाय :-

इसके नियंत्रण के लिये कॉपर ऑक्सी क्लोराइड 0.3 या मेटलेक्जिल एम.जेड. (0.1%) का पानी में घोल बनाकर छिड़काव 10-15 दिन के अन्तराल में कम से कम 3 बार करना चाहिये।

आलू की पत्तियों पर कवक का प्रकोप रोकने के लिए बोर्डो मिश्रण(कॉपर सल्फ़ेट और बुझे हुए चूने के मिश्रण) या फ्लोटन का छिड़काव करें |

इसके अतिरिक्त फफूंदी नाशक दवा मैटल एक्सेल 4% और मैंकोजेब 64% की पूर्व मिश्रित दवा का छिड़काव 12 से 15 दिनों के अंतराल में तीन बार किया जाना चाहिए।

(3) आलू का पर्ण वेल्लन एवं मोजेक विशाणुजन्य रोग :-

इस रोग से प्रभावित पत्तियाँ पीली पड़कर मुरझा जाती हैं, जो बाद में सड़कर सूख जाती हैं। चूँकि विषाणु का नियंत्रण सम्भव नहीं है, अतः शुरूआती अवस्था में ग्रसित पौधे को खेत से उखाड़कर गड्ढे में दबा कर नष्ट कर दे।

How to control diseases in potato crop
How to control diseases in potato crop

नियंत्रण के उपाय :-

संक्रमित फसल में बीमारी को बढ़ने से रोकने हेतु मेटासिस्टाक्स 25 ई.सी. का छिड़काव 750 मि.ली. प्रति हेक्टेयर की नर से करें। एफिड अथवा जैसिड कीटों का प्रबन्धन करने से रोग के प्रसार की रोकथाम होती है।

(4) भूरा विगलन या ब्राउन रस्ट रोग:-

किसान भाइयों Potato Crop का चौथा प्रमुख रोग है भूरा विगलन या ब्राउन रस्ट रोग। यह रोग बैक्टीरिया अर्थात जीवाणु के कारण फैलता है। इस रोग से ग्रस्त पौधे सामान्य पौधों से बौने रह जाते हैं और कुछ ही समय में हरे के हरे ही मुरझा जाते हैं।

How to control diseases in potato crop
How to control diseases in potato crop

अगर रोगग्रस्त पौधों की जड़ों को काटकर साफ पानी या कांच के गिलास में रखें तो पौधे से जीवाणुओं का बाहर निकलना स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। अगर इन पौधों में कंद बनता है तो कंद के काटने पर एक भूरा घेरा कंद के अंदर देखने को मिलेगा।

रोग प्रबंधन :- इस रोग के प्रबंधन के लिए ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई जरूर करना चाहिए। प्रमाणित बीजों का उपयोग करना चाहिए। बुआई के पहले खोद के निकाले गए रोगी कंदों को जलाकर नष्ट करना चाहिए।

कंद लगाते समय 4 से 5 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से ब्लीचिंग पाउडर उर्वरक के साथ कुंड में मिलाएं। रोग दिखाई देने पर अमोनियम सल्फेट का उपयोग करना चाहिए, जो रोगजनक जीवाणुओं पर विपरीत प्रभाव डालता है।

(5) काला मस्सा रोग :-

यह फफूंदी के कारण होने वाले रोग है। इस रोग के प्रमुख लक्षण Potato Crop के कंधों पर दिखाई देते हैं, जिसमें भूरे से काले रंग के मस्सों की तरह उभार दिखाई देते हैं। यह कंद खाने में उपयोग लाने योग्य नहीं रह जाते हैं ।

How to Control Diseases in Potato Crop
How to Control Diseases in Potato Crop

नियंत्रण के उपाय :-

इस रोग का प्रबंधन हमें सही समय पर अवश्य करना चाहिए। सबसे पहले प्रमाणित बीजों का उपयोग करें। बुआई के पहले खोद के निकाले गए रोगी कंदों को जलाकर नष्ट करना चाहिए और प्रतिरोधक जातियों का प्रयोग करना चाहिए।

नियंत्रण के उपाय :-

  1. इस रोग के प्रबंधन के लिए प्रमाणित बीजों का उपयोग करना चाहिए।
  2. बुआई के पहले खोदकर निकाले गए रोगी कंदों को जलाकर नष्ट करना चाहिए।
  3. 50 लीटर पानी में 200 मिलीलीटर फॉर्म एल्डिहाइड मिलाकर बीज को उपचारित करना चाहिए।
  4. इसके अतिरिक्त पेंटा क्लोरो नाइट्रो बेंजीन की 12 किलोग्राम मात्रा को भी खेत में मिला देने से इस रोग के प्रबंधन में सहायता मिलती है।
  5. इस रोग का प्रबंधन नियंत्रित सिंचाई से भी किया जा सकता है।
  6. खेत को अधिक समय तक सूखा न रहने दें।
  7. जिस खेत में चेचक का रोग लग गया है, उस खेत में 3 से 4 साल तक आलू, सरसों, गाजर, फूलगोभी, चुकंदर आदि फसलें नहीं बोना चाहिए।

ध्यान रखने योग्य बातें :

आलू की फसल में रोग नियंत्रण (Diseases Control in Potato Crop) के लिए ध्यान रखने योग्य बातें:

  1. बुवाई के लिये स्वस्थ बीज ही काम में लेवें।
  2. किसान भाइयों का ध्यान नवम्बर से ही बीमारियों की तरफ जाना चाहिये।
  3. अगेती झुलसा व पिछेती झुलसा मुख्यतः फफूँदजनित रोग है। अधिक नमी व कम तापमान पिछेती झुलसा आने में मदद करता है। अतः आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के अन्तर पर 0.25 प्रतिशत मेंकोजेब का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये। यदि पिछेती झुलसा के भयावह रूप धारण करने का भय हो तो मेटालेक्जिल एम.जेड. 0.1 प्रतिशत अथवा मेंकोजेब 0.25 प्रतिशत का घोल
    बनाकर छिड़काव करना चाहिये।
  4. बीजजनित बीमारियाँ, जो फफूँदी या बैक्टीरिया से होती हैं, से बचने के लिये उपचारित बीज आलू का प्रयोग करना चाहिये। इसके भण्डारण पूर्व 3 प्रतिशत बोरिक अम्ल घोल में 30 मिनट तक बीज आलू को उपचारित करें।
  5. वायरस जनित रोगों से बचने के लिये कीटनाशी दवाओं मिथाइल ऑक्सी डिमेटोन आदि का 0.1 प्रतिशत घोल का आवश्यकतानुसार 15-20 दिन के अन्तर पर छिड़काव करें।
  6. समय व धन बचत के लिये कीटनाशक व बीमारी की रोकथाम वाली दवाओं का, सम्भव हो सके तो एक साथ छिड़काव करें।
  7. खुदाई कार्य बाजार की माँग व फसल अवधि देखकर करें, जिससे अधिक से अधिक पैदावार व लाभ मिल सके।
  8. अगेती आलू फसल की बुवाई करने वाले क्षेत्रों में तना ऊतक क्षय रोग से बचने के लिये प्रोफेनोफॉस 50 ई.सी. का छिड़काव 1500 मि.ली. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने से होने वाले उत्पादन की हानि से बचा जा सकता है या 0.06 प्रतिशत इमिडाक्लोरप्रिड घोल का छिड़काव 25-30 दिनों
    की फसल पर करें। 9. आलुओं को अलग-अलग आकार में छाँटकर बोरियों में भरना चाहिये। बीज आलू को 15 मार्च तक शीत भण्डार में पहुँचा देना चाहिये।

किसान भाइयों आपने पढ़ा कि आलू की ज्यादातर बीमारियां पुराने कंदों के रोगग्रस्त होने के कारण फैलती हैं। इसलिए आलू की फसल में रोग नियंत्रण (Diseases Control in Potato Crop)के लिए सर्वोत्तम यही होगा कि बीजोपचार किया जाए। प्रमाणित बीजों का उपयोग किया जाए। फसलों में फसल चक्र अपनाया जाए। यानी कि लगातार एक फसल एक ही खेत में न लेकर बदल बदलकर ली जाए।

आलू की फसल में रोग नियंत्रण (Diseases Control in Potato Crop) के लिए अगर आप मेड़ों की सफाई और खरपतवारों का सही प्रबंधन करेंगे तो बैक्टीरिया और फफूंद को पनपने के लिए एक ऑल्टरनेट होस्ट यानी कि वैकल्पिक आश्रय नहीं मिल पाएगा। तो किसान भाइयों अपनी फसल को रोगों से बचाएं। सही समय पर लक्षणों की पहचान करें और सही निदान के द्वारा आलू की फसल के रोगों का उचित प्रबंधन करें। उम्मीद है यह ब्लॉग पोस्ट आपको सारगर्भित लगा होगा। अपने विचार हमें कमेंट सेक्शन में लिखकर जरूर बताएं। धैर्यपूर्वक इस ब्लॉग पोस्ट को पढ़ने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

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