Kharpatwar ko jad se kaise khatam kare : नमस्ते दोस्तों! बारिश का मौसम आते ही खेतों में हरियाली छा जाती है। फसलें हरी-भरी और स्वस्थ दिखने लगती हैं, पौधों में नई जान आ जाती है। लेकिन इस खूबसूरत मौसम के साथ एक बड़ी समस्या भी आती है – खरपतवार! मोथा घास, दूब घास, गाजर घास, पार्थेनियम, और जंगली चोलाई जैसे घास किसानों के लिए सिरदर्द बन जाते हैं। ये खरपतवार इतने जिद्दी होते हैं कि इन्हें हाथ से निकालना आसान नहीं होता।

अगर आप कमर्शियल खेती करते हैं और मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो मजदूरों से घास हटवाने में लागत बहुत बढ़ जाती है। इसीलिए आज हम आपको बताएंगे कि खरपतवार को जड़ से खत्म करने के दो आसान तरीके – ऑर्गेनिक और रासायनिक। तो चलिए, पूरी जानकारी लेते हैं!
खरपतवार (weeds) की समस्या और नुकसान-
बारिश के मौसम में खरपतवार (Weeds) तेजी से उगते हैं और फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। ये ना सिर्फ मिट्टी के पोषक तत्व चुराते हैं, बल्कि फसलों की जड़ों को भी कमजोर करते हैं।
भारत के अलग-अलग राज्यों जैसे राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, और आंध्र प्रदेश में घास की समस्या आम है। खासकर गन्ना और मक्का जैसी फसलों में ये ज्यादा परेशान करते हैं। आइए, कुछ प्रमुख खरपतवारों (weeds) के बारे में जानते हैं:
(1) मोथा घास (motha ghas)–

- खासियत: इसकी जड़ों में गांठें होती हैं, जो बार-बार नई जड़ें बनाती हैं। हाथ से उखाड़ने पर जड़ें टूट जाती हैं और फिर से उग आती हैं।
- नुकसान: मोथा घास की गांठें चूहों को आकर्षित करती हैं, जो फसलों की जड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं। यह बागवानी और अन्य फसलों को भी प्रभावित करता है।
- समस्या: अगर एक भी गांठ मिट्टी में रह जाए, तो यह कई नए पौधे उगा देती है।
(2) दूब घास
- खासियत: इसकी जड़ें मिट्टी में बहुत गहरे तक फैलती हैं। ऊपर के हिस्सा से ज्यादा, नीचे जड़ों का जाल होता है।
- नुकसान: दूब घास फसलों की जड़ों को बढ़ने से रोकती है। अगर इसका एक छोटा सा हिस्सा भी बचा रहे, तो यह अगले साल फिर से उग आता है।
- समस्या: इसे मैन्युअल रूप से नियंत्रित करना मुश्किल है।
(3) गाजर घास (पार्थेनियम)-
- खासियत: इसमें सफेद या पीले फूल आते हैं और तेज गंध होती है। यह मेड़ों और खेतों के किनारों पर ज्यादा उगता है।
- नुकसान: यह मिट्टी की उर्वरता को कम करता है और फसलों को नुकसान पहुंचाता है।
- समस्या: इसके बीज हवा के साथ फैलते हैं, जिससे यह तेजी से बढ़ता है।
(4) जंगली चोलाई –
- खासियत: इसके बीज बहुत ज्यादा मात्रा में बनते हैं, और इसकी जड़ें गहरी और मोटी होती हैं।
- नुकसान: यह अन्य फसलों को जगह नहीं देता और पोषक तत्व सोख लेता है।
- समस्या: इसके गुच्छे जैसे पौधे खेत में फैलकर फसलों को दबा देते हैं।
जैविक तरीके से खरपतवार नियंत्रण
अगर आप जैविक खेती करते हैं, तो खरपतवार नियंत्रण के लिए ये तरीके अपनाएँ:
(1) गहरी जुताई–
- कब करें: जून के महीने में जब बहुत गर्मी हो, खेत की गहरी जुताई करें। सूरज की गर्मी खरपतवार के बीज और जड़ों को नष्ट कर देती है।
सावधानियाँ:
- मिट्टी के बड़े-बड़े ढेले न बनने दें, क्योंकि खरपतवार की जड़ें उनमें छिप सकती हैं।
- खेत बहुत गीला नहीं होना चाहिए, नहीं तो मिट्टी नीचे बैठ जाएगी और खरपतवार फिर से उग आएंगे।
- लाभ: अधिक तापमान के कारण खरपतवार के बीज नष्ट हो जाते हैं।
(2) गोबर की खाद का उचित उपयोग–
- गोबर की खाद को अच्छी तरह से सड़ाएँ। अगर उसमें खरपतवार के बीज रह गए हैं, तो वे खेत में जाकर उग सकते हैं।
- खाद को 2-3 महीने तक सड़ने दें और जैविक डीकंपोजर का उपयोग करें।
- लाभ: उचित रूप से सड़ी हुई खाद खरपतवार की समस्या को काफी हद तक कम करती है।
(3) मल्चिंग
- खेत को भूसे, सूखी घास या बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक से मल्च करें।
- लाभ: यह खरपतवार के बीजों को अंकुरित होने से रोकता है।
Rasayanik kharpatwar Niyantran –
रासायनिक शाकनाशी व्यावसायिक उत्पादकों के लिए एक त्वरित और प्रभावी समाधान है। लेकिन सही दवा और सही खुराक का उपयोग करना महत्वपूर्ण है।
(1) ग्लाइफोसेट
यह क्या है: – यह एक प्रणालीगत और गैर-चयनात्मक शाकनाशी है जो सभी प्रकार के खरपतवारों (चौड़ी और संकरी पत्तियों) को जड़ से नष्ट कर देता है।
उपयोग:– इसे केवल खुले खेतों में ही इस्तेमाल करें, क्योंकि यह फसलों को भी नुकसान पहुंचा सकता है।
खुराक: – 71% ग्लाइफोसेट के लिए, 6-8 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाएं। 1 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। 41% ग्लाइफोसेट के लिए, खुराक को दोगुना करें।
शैंपू का पाउच या स्टिकर (चिपको जैसा) डालें ताकि शाकनाशी पत्तियों पर अच्छी तरह चिपक जाए।
ब्रांड: मीरा इगेटर, ऑल किल और अन्य कंपनियों के ग्लाइफोसेट बाजार में उपलब्ध हैं।
सावधानी:–
खेत में नमी होनी चाहिए। बारिश के बाद या हल्की सिंचाई के बाद छिड़काव करें।
छिड़काव के बाद कम से कम एक महीने तक फसल न बोएं, ताकि अंकुरण में कोई समस्या न हो।
(2) हेलोसल्फ्यूरॉन मिथाइल (सेम्प्रा)–
यह क्या है: हैलोसल्फ्यूरॉन मिथाइल 75% डब्लूजी एक चयनात्मक शाकनाशी है, जो मोथा घास को जड़ों से खत्म करने में खास तौर पर कारगर है। इसका इस्तेमाल गन्ना और मक्का जैसी फसलों में भी किया जा सकता है।
उपयोग:
खुराक: 36 ग्राम प्रति 200-250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें। शैम्पू पाउच डालना न भूलें। यह शाकनाशी मोथा घास की गांठों तक पहुंचकर उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर देता है।
लाभ: यह प्रणालीगत शाकनाशी पौधे के ऊपरी और निचले हिस्सों में घूमता है, जिससे खरपतवार पूरी तरह से सूख जाता है।
सावधानी:
इसका इस्तेमाल सही मात्रा में और सही समय पर करें। शाकनाशी का इस्तेमाल करते समय सावधानियां
यूरिया न मिलाएं: कई किसान गलती से शाकनाशी के साथ यूरिया मिला देते हैं, जिससे पत्तियां जल्दी सूख जाती हैं, लेकिन जड़ें बची रहती हैं। इससे खरपतवार फिर से उग आते हैं।
सही समय: छिड़काव के लिए खेत में नमी होना जरूरी है। बारिश के बाद या हल्की सिंचाई के बाद छिड़काव करें।
परिणाम का इंतजार करें: शाकनाशी का असर दिखने में 7-10 दिन लग सकते हैं। धीरे-धीरे घास। पीले होकर सूख जाते हैं।
अंतराल रखें: शाकनाशी का छिड़काव करने के बाद कम से कम एक महीने का अंतराल रखें, ताकि अगली फसल के अंकुरण में कोई दिक्कत न आए।
Kharpatwar को जड़ से खत्म करना हर किसान का सपना होता है। आप जैविक खेती करें या रासायनिक, सही तरीके और सावधानियों का पालन करके आप अपने खेत को खरपतवार मुक्त बना सकते हैं। गहरी जुताई, सही खाद प्रबंधन और ग्लाइफोसेट या हैलोसल्फ्यूरॉन मिथाइल 75% डब्लूजी जैसे शाकनाशी का सही इस्तेमाल आपको स्थायी समाधान दे सकता है।
तो देर न करें, अपने खेत की तैयारी शुरू करें और खरपतवार (Weeds) से हमेशा के लिए छुटकारा पाएं। अगर आपके कोई सवाल हैं या आप अपना अनुभव साझा करना चाहते हैं, तो नीचे कमेंट करें। इससे दूसरे किसान भाइयों को भी मदद मिलेगी।