Weed Control : खरपतवार किसानों के लिए एक सिरदर्द हैं, जो धान की फसल को पानी, पोषक तत्व, और सूरज की रोशनी के लिए चुनौती देते हैं। अगर समय पर इनका नियंत्रण न किया जाए, तो फसल की पैदावार में भारी कमी आ सकती है।
खरपतवार न सिर्फ फसल की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं, बल्कि कीटों और रोगों को भी पनाह देते हैं। धान की खेती में खरपतवारों को बोआई के 15 से 30 दिन के भीतर नियंत्रित करना सबसे जरूरी है, क्योंकि यही वह क्रांतिक अवस्था है जब फसल सबसे ज्यादा नुकसान उठा सकती है। आइए, धान में खरपतवार नियंत्रण के तरीकों को समझते है।-
खरपतवार क्यों हैं नुकसानदेह?
खरपतवार फसल के साथ-साथ मिट्टी के पोषक तत्व, जैसे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, और पोटाश, को सोख लेते हैं। एक हेक्टेयर खेत में खरपतवार 30-60 किलो नाइट्रोजन और 40-100 किलो पोटाश खा सकते हैं, जिससे धान के पौधों को नुकसान होता है। इसके अलावा, कुछ खरपतवारों के बीज फसल के बीजों में मिलकर उनकी गुणवत्ता को खराब करते हैं।

- धान फसल (paddy crop) में प्रमुख खरपतवार सांवा, मोथा, कनकौआ, जंगली धान, और चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार जैसे जंगली जूट और सफेद मुर्ग आम हैं।
- ये खरपतवार फसल की रोशनी और पानी को चुराते हैं, जिससे पौधों की बढ़वार रुकती है और पैदावार 20-50% तक कम हो सकती है।
- खरपतवार कीटों और रोगों को आश्रय देते हैं, जिससे फसल को और खतरा बढ़ता है।
खरपतवार नियंत्रण (Weed Control) का सही समय
धान की फसल में खरपतवारों का नियंत्रण बोआई के 15-30 दिन के भीतर करना सबसे जरूरी है, क्योंकि यही वह समय है जब फसल की “क्रांतिक अवस्था” होती है। इस दौरान खरपतवारों को हटाने से फसल की पैदावार पर कोई खास असर नहीं पड़ता।
- धान में क्रांतिक अवस्था अवस्था कल्ले निकलने के समय होती है। इस समय खरपतवारों को नियंत्रित करना बहुत जरूरी है।
- अगर इस अवधि के बाद खरपतवार हटाए जाते हैं, तो पैदावार में 20 से 40% तक की कमी आ सकती है।
धान में खरपतवार नियंत्रण के तरीके-
1. रासायनिक विधि-
रासायनिक खरपतवारनाशी धान में खरपतवारों को तेजी से खत्म करने का आसान तरीका हैं।
सीधी बोआई वाले धान:
- बिस्पाइरीबैक-सोडियम: 100 मिली प्रति एकड़, बुवाई के 15-20 दिन बाद। यह सांवा और मोथा जैसे खरपतवारों को नियंत्रित करता है।
- एजीम सल्फ्यूरॉन: 28 ग्राम प्रति एकड़, 15-20 दिन बाद।
- क्लोरीफ्यूरॉन + मेटासल्फ्यूरॉन: 8 ग्राम प्रति एकड़, चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए।
रोपाई वाले धान:
- बिस्पाइरीबैक-सोडियम 10% SC: 100 मिली प्रति एकड़, रोपाई के 18-20 दिन बाद।
- बेनसल्फ्यूरॉन मिथाइल + प्रेटीलाक्लोर: 4 किलो प्रति एकड़, रोपाई के 1 दिन बाद।
- प्रेटीलाक्लोर + पायराजोसल्फ्यूरॉन: 400 ग्राम प्रति एकड़, मोथा और सांवा के लिए।
छिड़काव का तरीका*: 200 लीटर पानी में घोलकर फ्लैट फैन नोजल से छिड़काव करें। खेत में नमी हो, लेकिन पानी भरा न हो। छिड़काव के 24 घंटे बाद पानी दें।
2. यांत्रिक और जैविक विधि
- निराई-गुड़ाई: बुवाई के 20-25 और 40-45 दिन बाद दो बार निराई करें।
- प्रमाणित बीज: अच्छी गुणवत्ता वाले बीज और सड़ी गोबर खाद का इस्तेमाल करें।
- सिंचाई नालियों की सफाई: खरपतवारों के बीजों को खेत में आने से रोकें।
अन्य फसलों में रासायनिक उपयोग –
मक्का में टेम्बोट्रियोन 34.4 एससी (120 ग्राम/हेक्टेयर) और गेहूं में पायरोक्सासल्फोन 85% WG (60 ग्राम/एकड़) जैसे हर्बिसाइड्स इस्तेमाल होते हैं। धान में बिस्पाइरीबैक-सोडियम और प्रेटीलाक्लोर का मिश्रण ज्यादा प्रभावी है, क्योंकि ये जलभराव वाले खेतों में भी काम करते हैं।
जैविक बनाम रासायनिक तरीके
जैविक खेती में खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई और मल्चिंग जैसे तरीके अपनाए जाते हैं, जो मेहनत और समय लेते हैं। दूसरी ओर, रासायनिक खरपतवारनाशी तेजी से काम करते हैं और लागत भी कम होती है।
उदाहरण के लिए, मक्का और गेहूं में जैविक तरीकों से खरपतवार नियंत्रण में 2-3 बार निराई-गुड़ाई की जरूरत पड़ती है, जबकि धान में रासायनिक हर्बिसाइड्स जैसे बिस्पाइरीबैक-सोडियम एक ही छिड़काव में असर दिखाते हैं।
धान की फसल में खरपतवारों का नियंत्रण बोआई के 15-30 दिन के भीतर करना जरूरी है, ताकि पैदावार और गुणवत्ता बनी रहे। रासायनिक हर्बिसाइड्स जैसे बिस्पाइरीबैक-सोडियम और प्रेटीलाक्लोर तेज और प्रभावी हैं, लेकिन जैविक तरीके भी छोटे किसानों के लिए फायदेमंद हो सकते हैं।
मक्का और गेहूं की तुलना में धान में जलभराव के कारण खरपतवारों का प्रबंधन थोड़ा अलग है, लेकिन सही समय पर सही कदम उठाने से नुकसान कम हो सकता है।