दोस्तों नमस्कार आज इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से हम बात करेंगे रबो 2024-25 में चने की खेती (Gram cultivation) कब और कैसे करनी चाहिए। बेस्ट और सर्वाधिक पैदावार देने वाली उन्नतशील किस्में कौन कौन से है ? साथ ही हमें इस लेख के माध्यम से जानकारी देंगें कि चने की इल्ली , तंबाकू इल्ली और कई प्रकार की इल्ली सुंडी यानी कीट प्रबंधन किस प्रकार करना चाहिए। चने की फसल में हमें कौन सी दवा का प्रयोग करना चाहिए।
चने के फ़सल पर उकठा जिसे हम वील्ट के नाम से भी जानते हैं, उसे प्रारंभिक कंट्रोल करने के लिए वे कौन सी एक्टिविटी करना चाहते हैं ताकि हमारी चने की फसल पर बिल्ट जैसी समस्याएं ना आए। अधिकतर पैदावार के लिए कौन-कौन सी तैयारी करनी चाहिए और आपने अक्सर देखा होगा कि चने की उचाई बहुत ज्यादा हो जाती है, तो फल और फूलों की सही संख्या नहीं आ पाती है यानी चने की फसल पर फल-फूल की संख्या कैसे बढ़ानी है ? कौन सी औषधि से बीज उपचार ताकि अंकुरण अच्छा हो सके।
दरअसल चना एक ऐसी फसल है जहां सिंचाई के उपाय बिल्कुल भी नहीं हैं वहां पर आप चने की खेती (Gram cultivation) कर सकते हैं। और चने की फसल के लिए अच्छी मात्रा में सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं तो किस प्रकार से आप अधिकतम उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।तो दोस्तों इस प्रकार की समस्या के लिए हर एक जानकारी इस लेख के माध्यम से मिलने वाली है।
चने की उन्नत किस्में (Improved varieties of gram)
सबसे पहला पॉइंट है दोस्तों वह है उन्नतशील किस्में की। हम आपके लिए चार पांच ऐसी किस्मों की जानकारी देंगे ,जो 2024 -25 में बंपर पैदावार आपको दिला सकती हैं।
(1) दफ्तरी 21 :-
चने की खेती (Gram cultivation) के लिए पहले नंबर पर हमने दफ्तरी 21 चना के किस्म को रखा है, इस किस्म को महाराष्ट्र की एग्रो प्राइवेट लिमिटेड ने विकसित किया है। जो कि सबसे अच्छी किस्म है।यह किस्म अपने उत्पादन के दम पर किसानों के बीच जगह बना ली है। इस किस्म का दाना बड़ा और लाल रंग का होता है। जिसका मार्केट में भाव अच्छा मिलता है।
दफ्तरी 21 की प्रमुख विशेषताएं:
- उच्च पैदावार: यह किस्म प्रति हेक्टेयर 25-30 क्विंटल तक पैदावार देती है, जो किसानों के लिए काफी लाभदायक है।
- बड़े और लाल दाने: दफ्तरी 21 के दाने बड़े और गहरे लाल रंग के होते हैं, जो बाजार में अधिक कीमत पर बिकते हैं।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता: यह किस्म कई सामान्य बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी है, जिससे किसानों को कम कीटनाशकों का उपयोग करना पड़ता है।
- सूखे की सहनशीलता: यह किस्म सूखे की स्थिति में भी अच्छी पैदावार देती है।
- कम समय में परिपक्व: यह किस्म अन्य किस्मों की तुलना में कम समय में परिपक्व हो जाती है।
(2) Vikrant Phule (फ़ूले विक्रम):-
दूसरे नंबर पर फूले विक्रम किस्म को रखा है, ये भी कमाल की किस्म है।Vikrant Phule चने की यह किस्म एक अत्यंत उन्नत नवीनतम किस्म है ,जिसे महात्मा फुले कृषि विश्वविद्यालय, शहरी से हाल ही में विकसित की गई है।इसे फ़ूले विक्रम के नाम से भी जानते है। फ़ूले विक्रम को ICRISAT की ब्रीडिंग लाइन ICCV 08108 से विकसित किया गया था.
फूले विक्रम की प्रमुख विशेषताएं:
- उच्च पैदावार: यह किस्म प्रति हेक्टेयर 12 से 16 क्विंटल तक पैदावार देती है, जो किसानों के लिए काफी लाभदायक है।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता: यह किस्म फ्यूजेरियम विल्ट (उपसुक) रोग के प्रति अत्यधिक प्रतिरोधी है।
- बड़े दाने: इसके दाने मध्यम आकार के और हल्के पीलापन लिए भूरे रंग के होते हैं।
- मशीन से कटाई के लिए उपयुक्त: यह किस्म मशीन से कटाई के लिए उपयुक्त है क्योंकि इसकी पहली फली मिट्टी की सतह से लगभग 30 सेमी ऊपर होती है।
- जल्दी पकने वाली: यह किस्म लगभग 105 से 110 दिन में पककर तैयार हो जाती है।
(3) जेजी 130 (JG 130) :–
तीसरे नंबर पर जेजी 130 किस्म है। चने की जेजी 130 एक उन्नत किस्म है। इसे वर्ष 2002 में विकसित किया गया था. यह 110 से 120 दिन में पकाकर तैयार होती है। इसकी उपज 18-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इसकी खास गुण यह है कि यह वर्षा आधारित क्षेत्रों के लिए भी अनुकूल होती है.
जेजी 130 की प्रमुख विशेषताएं:
- उच्च उपज: यह किस्म प्रति हेक्टेयर 20 से 25 क्विंटल उपज देती है, जो किसानों के लिए बहुत लाभदायक है।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता: यह किस्म फ्यूजेरियम विल्ट (उपसुक) रोग के प्रति प्रतिरोधक है।
- सूखा सहनशीलता: यह किस्म सूखे की स्थिति में भी अच्छी उपज देती है।
- मध्यम परिपक्वता: यह किस्म मध्यम अवधि में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
- बड़े दाने: इसके दाने मध्यम आकार के और हल्के भूरे रंग के होते हैं।
(4) पूसा मानव(pusa manav):-
पूसा मानव(pusa manav) चौथे नंबर पर पूसा मानव किस्म को रखा है। जिसे 20211 में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया। यह चना की पूसा श्रृंखला की एक उन्नत किस्म है, जिसे विशेष रूप से उच्च उत्पादन क्षमता, बीमारी प्रतिरोधक और सूखा सहनशीलता के लिए भी जाना जाता है।
पूसा मानव की प्रमुख विशेषताएं:
- उच्च उपज: यह किस्म प्रति हेक्टेयर 15-16 क्विंटल तक उपज देती है, जो किसानों के लिए काफी लाभदायक है।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता: यह किस्म फ्यूजेरियम विल्ट (उपसुक) रोग के प्रति प्रतिरोधी है।
- सूखा सहनशीलता: यह किस्म सूखे की स्थिति में भी अच्छी उपज देती है।
- मध्यम पकने वाली: यह किस्म मध्यम अवधि में पककर तैयार हो जाती है।
- बड़े दाने: इसके दाने मध्यम आकार के और गहरे भूरे रंग के होते हैं।
(5)आरबीजी-202 :-
पांचवें नंबर पर हमने आरवीजी 202 चने की किस्म को रखा है। चने की नई देसी किस्म (आरबीजी-202) को सीहोर स्थित दलहन अनुसंधान केंद्र से बनाई है। इस किस्म में पाला पड़ने की संभावना कम रहती है। इसका प्रजनन बीज बड़वानी जिले के तलून स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में तैयार किया।जिसे सरकार ने बाद में महाराष्ट्र और गुजरात भेजा।इस किस्म के पौधे की ऊंचाई पौने दो फ़ुट तक रहती है। इसकी पैदावार 22 से 25 क्विंटल तक प्रति हेक्टेयर होती है।
दोस्तों ये आरवीजी 202 किस्म 105 से 110 दिन में तैयार हो जाती है और इन किस्मों से आपको अधिकतम 14 क्विंटल तक की पैदावार मिल सकती है।
आरबीजी-202 की मुख्य विशेषताएं:
- उच्च उपज: यह किस्म प्रति हेक्टेयर 25-30 क्विंटल उपज देती है, जो किसानों के लिए बहुत लाभदायक है।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता: यह किस्म फ्यूजेरियम विल्ट रोग के प्रति प्रतिरोधक है।
- सूखा सहनशीलता: यह किस्म सूखे की स्थिति में भी अच्छी उपज देती है।
- मध्यम परिपक्वता: यह किस्म मध्यम अवधि में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
- बड़े दाने: इसके दाने मध्यम आकार के और हल्के भूरे रंग के होते हैं।
उचित समय :-
समय की बात करें तो चने की खेती (Gram cultivation) के लिए सबसे अच्छा समय 15 अक्टूबर से 10 नवंबर तक है, यानी आपको इस समय तक बुवाई कर देनी चाहिए। लेकिन दोस्तों, अक्टूबर का आखिरी सप्ताह चने की बुवाई के लिए सबसे अच्छा समय माना जाता है।
जहां सिंचाई के साधन थोड़े बेहतर हैं, वहां के किसान 10 से 15 नवंबर तक चने की बुवाई कर सकते हैं, यानी अक्टूबर का आखिरी सप्ताह और नवंबर का पहला सप्ताह चने की बुवाई के लिए सबसे उपयुक्त और अच्छा समय माना जाता है।
बीज की मात्रा :-
एक एकड़ में 30 किग्रा से लेकर के 35 किग्रा सीट्स की आवश्यकता पड़ती है यानी कि चने की दाना के आकार के हिसाब से बुवाई करनी चाहिए। यदि थोड़ा सा बड़ा दाना है तो चने की मात्रा थोड़ा सा बढ़ा सकते हैं। वैसे एक एकड़ में 30 किग्रा बीज पर्याप्त होता है।
खाद का बेसल डोज :-
चने की अधिकतम उपज लेने के लिए न केवल उत्तम किस्म की जरूरत होती है बल्कि उन्नत किस्म के साथ-साथ आपको बेसल डोज का भी इस्तेमाल करना होगा। इसके अलावा चने का उत्पादन क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियों और खासकर मौसम के कारक पर निर्भर करता है। यह भी संभव है कि उक्त किस्म आपके क्षेत्रों में कम उत्पादन दे और हमारे क्षेत्रों में ज्यादा उत्पादन दे। तो इन सबका मुख्य कारण मौसम, जमीन, सिंचाई और उर्वरक है।
जब आप चने की खेती कर रहे हैं तो बार-बार ज्यादा यूरिया या उर्वरक देने की जरूरत नहीं है या असिंचित क्षेत्रों में आप जो भी उर्वरक इस्तेमाल कर रहे हैं, उनका इस्तेमाल बुवाई के समय ही करना चाहिए। यानी बेसल डोज का इस्तेमाल बुवाई के समय ही करना है। अब अगर किसी क्षेत्र में डीएपी की कमी है या कहीं एसएसपी उपलब्ध है या कहीं एनपीके 12:32:16 उपलब्ध है। तो ऐसी स्थिति में बेसल डोज कैसे दे ?
अब मान लीजिए आपके पास डीएपी खाद उपलब्ध है तो ऐसी स्थिति में आप एक एकड़ में 50 किलो डीएपी, 30 किलो एमओपी (म्यूरिएट और पोटाश), 6 किलो बेंटोनाइट सल्फर ग्रेनुलर लें और साथ ही बुवाई के समय 10 किलो सागरिका का प्रयोग करें और साथ ही 500 ग्राम यूपीएल कंपनी का फफूंदनाशक का प्रयोग करें, इन सभी को अच्छे से मिला लें और बुवाई के समय प्रयोग करें।
अब अगर आपके क्षेत्र में डीएपी उपलब्ध नहीं है तो आप एसएसपी खाद का भी प्रयोग कर सकते हैं। अब अगर आप एसएसपी खाद का प्रयोग करेंगे तो सल्फर कैल्शियम और जिंक बोरोन भी उपलब्ध रहेंगे। अगर आप एसएसपी को बेसल खुराक के तौर पर प्रयोग कर रहे हैं तो आपको इसके साथ 20 किलो यूरिया और 20 किलो पोटाश का प्रयोग करना होगा और साथ ही दो बैग एसएसपी खाद का प्रयोग करना होगा।
अब अगर डीएपी और एसएसपी दोनों उपलब्ध नहीं है तो ऐसी स्थति में आप एक एकड़ में एनपीके 12 :32 :16 को एक बोरी और साथ में 7 किलो बेंटोनाइट सल्फर का इस्तेमाल कर सकते हैं। हालांकि, डीएपी या एसएसपी का मिश्रण सबसे अच्छा है।
इससे चने की पैदावार बढ़ाने में काफी फर्क पड़ेगा, अगर गोबर की खाद आसानी से कम कीमत पर मिल जाए तो उसमें ट्राइकोडर्मा मिला लें और प्रति एकड़ एक से दो ट्रॉली गोबर की खाद का इस्तेमाल करें। क्योंकि गोबर की खाद में पोषक तत्व होते हैं, लेकिन अगर आप इस खाद में ट्राइकोडर्मा मिलाकर इस्तेमाल करेंगे तो विल्ट की समस्या नहीं होगी।
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बोवाई का तरीका :-
अब बात करते है कि चने की बोवाई कितनी दूरी पर करनी चाहिए। तो चने की अच्छा उत्पादन के लिए ज्यादा से ज्यादा ब्रांचेस ,ज्यादा से ज्यादा फैलाव के लिए लाइन से लाइन की दूरी 30 सेंटीमीटर, पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर और गहराई की बात करें तो असिंचित क्षेत्रों में चने की खेती कर रहे हैं, तो 7 से 8 सेंटीमीटर गहराई पर चने की बुआई करनी चाहिए।
बीज उपचार :-
अब चने की बीज उपचार के बारें में बात करें ,तो इसके लिए मुख्य चार फैक्टर है क्योंकि अंकुरण जमाब अच्छे से हो और बिल्ट की समस्या ना आए तो पहले हम एफबीआई पद्धति से हम बीजों को उपचार करते थे यानी अलग-अलग कीटनाशक अलग-अलग फंगी साइट और अलग-अलग बैक्टीरिया हमको लेना पड़ता था लेकिन अब मार्केट में ऐसे तीन धारी तलवार यानि एक ही बीज उपचार में तीन दवाई उपलब्ध हैं।
तो अब हम बेस्ट फंगीसाइड की बात करें जो कि चने की फसल के लिए स्पेशल हैं ,इसके लिए यूपीएल कंपनी की इलेक्ट्रॉन दवाई आती है इससे बीजों को उपचार करने के लिए 2 एमएल दवाई को एक किग्रा बीजों को उपचार कर सकते हैं। यानि कि पानी के हल्के छींटे मार कर चने के बीजों को उपचार कर सकते हैं।