Haldi ki kheti: हल्दी न सिर्फ हमारे खाने का स्वाद बढ़ाती है बल्कि यह किसानों की आमदनी भी बढ़ा सकती है। भारत दुनिया का 80% हल्दी उत्पादन करता है। अगर आप छोटी जोत वाले किसान हैं और अतिरिक्त आय चाहते हैं, तो हल्दी की खेती आपके लिए सही विकल्प हो सकती है। आइए जानते हैं हल्दी की खेती से कैसे कमाएं मोटा मुनाफा? जानिए उन्नत किस्में, बुवाई का सही तरीका, कीट प्रबंधन और बाजार भाव और हल्दी की वैज्ञानिक खेती का पूरा तरीका।
- हल्दी की खेती क्यों करें?
- हल्दी की खेती के फायदे (Benefits of Turmeric Cultivation) :-
- भूमि का चुनाव
- भूमि की तैयारी
- हल्दी की उन्नत किस्में (Advanced Varieties of Turmeric)-
- बुवाई का तरीका
- बीजोपचार
- खाद और उर्वरक
- सिंचाई
- खरपतवार नियंत्रण
- प्रमुख रोग और कीट प्रबंधन
- कटाई और उपज
- हल्दी की प्रोसेसिंग और भंडारण
हल्दी की खेती क्यों करें?
Haldi की खेती कई मायनों में फायदेमंद है। यह न सिर्फ कम समय में अच्छा मुनाफा देती है, बल्कि इसे उगाना भी आसान है। भारत में हल्दी (Turmeric) की मांग हमेशा रहती है, क्योंकि इसका इस्तेमाल हर घर में होता है। इसके अलावा, हल्दी को दवाइयों और कॉस्मेटिक्स में भी खूब इस्तेमाल किया जाता है।

हल्दी के कंद में करक्यूमिन नाम का पीला रंग और टर्मेरॉल नाम का तैलीय पदार्थ होता है, जो इसे खास बनाता है। इसमें कार्बोहाइड्रेट और खनिज भी भरपूर मात्रा में होते हैं, जो इसे और भी मूल्यवान बनाते हैं।
हल्दी की खेती के फायदे (Benefits of Turmeric Cultivation) :-
- अच्छा मुनाफा: 1 एकड़ में 50-60 क्विंटल हल्दी मिल सकती है, जिससे ₹3-5 लाख तक की कमाई हो सकती है।
- कम समय: फसल 8-9 महीने में तैयार हो जाती है।
- कम पानी: हल्दी को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती, खासकर बरसात के मौसम में।
- अंतरवर्ती खेती: इसे बगीचों में दूसरी फसलों के साथ उगाया जा सकता है।
- बाजार में मांग: हल्दी की डिमांड भारत और विदेशों में हमेशा बनी रहती है।
भूमि का चुनाव
हल्दी की खेती लगभग हर तरह की मिट्टी में हो सकती है, लेकिन अच्छी पैदावार के लिए सही मिट्टी चुनना जरूरी है। बलुई दोमट या चिकनी दोमट मिट्टी, जिसमें पानी का निकास अच्छा हो और जीवांश (ऑर्गेनिक मैटर) ज्यादा हो, हल्दी के लिए सबसे अच्छी होती है।

मिट्टी का पीएच मान 5.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए। अगर मिट्टी ज्यादा चिकनी, क्षारीय, या पानी रुकने वाली हो, तो हल्दी का विकास रुक सकता है। हल्दी को बगीचों में दूसरी फसलों, जैसे केला या नारियल, के साथ भी उगाया जा सकता है, जिससे जमीन का पूरा इस्तेमाल होता है।
भूमि की तैयारी
हल्दी की अच्छी पैदावार के लिए जमीन को अच्छे से तैयार करना बहुत जरूरी है, क्योंकि यह फसल जमीन के अंदर उगती है। इसके लिए:
- खेत की 3-4 बार गहरी जुताई करें। मिट्टी पलटने वाले हल का इस्तेमाल करें।
- आखिरी जुताई में 10-15 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट मिलाएं, ताकि मिट्टी भुरभुरी और उपजाऊ हो जाए।
- खेत में पानी का निकास अच्छा रखें, ताकि बारिश में पानी न रुके।
हल्दी की उन्नत किस्में (Advanced Varieties of Turmeric)-

हल्दी की कई उन्नत किस्में हैं, जो अलग-अलग समय में पकती हैं और अच्छी उपज देती हैं। नीचे दी गई तालिका में कुछ प्रमुख किस्मों की जानकारी दी गई है:
किस्म | पकने का समय | उपज (क्विंटल/एकड़) | खासियत |
---|---|---|---|
कोरमा | 7-8 महीने | 50-55 | 6.5% करक्यूमिन, अच्छा रंग |
सुगंधा | 8-9 महीने | 55-60 | खुशबूदार, बाजार में मांग |
सुरोमा | 7-8 महीने | 45-50 | रोगों से बचाव, मजबूत कंद |
प्रभा | 8-9 महीने | 50-55 | उच्च उपज, अच्छी गुणवत्ता |
प्रथम | 7-8 महीने | 48-52 | रोग प्रतिरोधी, तेज विकास |
बुवाई का तरीका
हल्दी की बुवाई के लिए स्वस्थ और अच्छी कंदों का इस्तेमाल करें। बीज की मात्रा इस बात पर निर्भर करती है कि आप शुद्ध फसल उगा रहे हैं या मिश्रित फसल:
- शुद्ध फसल: 8-10 क्विंटल कंद प्रति एकड़।
- मिश्रित फसल: 5-6 क्विंटल कंद प्रति एकड़।
- कंद 7-8 सेमी लंबे और कम से कम दो आंखों वाले होने चाहिए। बड़े कंदों को काटकर भी बोया जा सकता है।
पैरामीटर | विवरण |
---|---|
बीज दर | 8-10 क्विंटल/एकड़ |
बुवाई का समय | अप्रैल-जुलाई |
कतार से कतार दूरी | 45 सेमी |
पौधे से पौधे दूरी | 25 सेमी |
बुवाई की गहराई | 5-7 सेमी |
- समतल क्यारी*: 5-7 मीटर लंबी और 2-3 मीटर चौड़ी क्यारियां बनाएं। जल निकास की व्यवस्था रखें।
- मेड़ पर बुवाई: जहां पानी रुकने का खतरा हो, वहां 15-20 सेमी ऊंची मेड़ों पर बोएं।
- बुवाई के बाद खेत में नमी बनाए रखने और खरपतवार रोकने के लिए सूखी घास, पुआल, या भूसे की मोटी परत (मल्चिंग) बिछाएं। इससे उपज 40% तक बढ़ सकती है।
बीजोपचार
बुवाई से पहले कंदों को कीट और रोगों से बचाने के लिए उपचार करें:
- 2.5 ग्राम डायथेन एम-45, बीजामृत, या मैन्कोजेब को 1 लीटर पानी में घोलें।
- कंदों को इस घोल में 30-50 मिनट तक डुबोएं, फिर छाया में सुखाएं।
- अगर दीमक का खतरा हो, तो 2 मिली क्लोरोपाइरीफॉस प्रति लीटर पानी मिलाकर उपचार करें।
खाद और उर्वरक
हल्दी की अच्छी पैदावार के लिए खाद और उर्वरक का सही समय पर इस्तेमाल जरूरी है। प्रति एकड़:
- गोबर खाद: 10-15 टन, खेत की जुताई से पहले मिलाएं।
- नाइट्रोजन: 40-50 किग्रा, तीन बार (बुवाई, 40-60 दिन बाद, 80-100 दिन बाद)।
- फॉस्फोरस: 25-30 किग्रा, बुवाई के समय।
- पोटाश: 30-40 किग्रा, बुवाई के समय।
- सूक्ष्म तत्व: जिंक सल्फेट और आयरन सल्फेट 20-25 किग्रा प्रति एकड़।
पोटाश हल्दी की गुणवत्ता और उपज के लिए बहुत जरूरी है। बुवाई के बाद नाइट्रोजन की शेष मात्रा डालने के बाद हल्की मिट्टी चढ़ाएं, ताकि कंद अच्छे से विकसित हों।
सिंचाई
हल्दी को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती, लेकिन सही समय पर सिंचाई जरूरी है:
- बुवाई के बाद: 4-5 दिन के अंतराल पर 4-5 सिंचाई करें, अगर बारिश न हो।
- बढ़ने का समय: 10-12 दिन के अंतराल पर।
- कंद बनने का समय (अक्टूबर-दिसंबर): 15 दिन के अंतराल पर, लेकिन मिट्टी को नम रखें।
- पकने का समय: कटाई से 15 दिन पहले सिंचाई बंद करें।
चिकनी मिट्टी में कम सिंचाई की जरूरत होती है, जबकि हल्की मिट्टी में ज्यादा पानी देना पड़ सकता है।
खरपतवार नियंत्रण
हल्दी की फसल में खरपतवार को नियंत्रित करना जरूरी है, क्योंकि ये पौधों की बढ़त रोक सकते हैं।
- बुवाई के 30, 60, और 90 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें।
- मल्चिंग (घास-पुआल की परत) से खरपतवार काफी हद तक कम हो जाते हैं।
- अक्टूबर-नवंबर में गुड़ाई के बाद पौधों के आधार पर मिट्टी चढ़ाएं, ताकि कंद अच्छे से विकसित हों।
प्रमुख रोग और कीट प्रबंधन
हल्दी की फसल को रोगों और कीटों से बचाने के लिए समय पर उपाय करें। नीचे प्रमुख रोगों और कीटों की जानकारी दी गई है:
प्रमुख रोग
रोग | लक्षण | नियंत्रण |
---|---|---|
पत्ती धब्बा | पत्तियों पर भूरे-काले धब्बे | मैन्कोजेब 2 ग्राम/लीटर पानी में छिड़काव |
प्रकंद सड़न | कंद गलना, बदबू आना | बाविस्टीन से बीज उपचार, 2 ग्राम/लीटर |
प्रमुख कीट
कीट | नुकसान | नियंत्रण |
---|---|---|
थ्रिप्स | पत्तियां मुड़ना, रस चूसना | इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मिली/लीटर पानी |
माइट | पत्तियां पीली पड़ना, छोटे धब्बे | डाइकोफॉल 2 मिली/लीटर पानी |
रोग और कीटों से बचाव के लिए नियमित रूप से खेत की जांच करें और स्थानीय कृषि विशेषज्ञों से सलाह लें।
कटाई और उपज
हल्दी की कटाई का सही समय तब होता है, जब पत्तियां पीली पड़ने लगें, जो आमतौर पर बुवाई के 7-9 महीने बाद होता है। कटाई से पहले:
- 15 दिन पहले सिंचाई बंद करें।
- कंदों को सावधानी से खोदें, ताकि वे टूटें न।
उपज
खेती का प्रकार | उपज (क्विंटल/एकड़) |
---|---|
सिंचित | 50-60 |
असिंचित | 30-40 |
उन्नत किस्मों और वैज्ञानिक खेती से प्रति एकड़ 50-60 क्विंटल तक हल्दी मिल सकती है। सूखी हल्दी की मात्रा कंदों का 15-20% होती है।
हल्दी की प्रोसेसिंग और भंडारण
कटाई के बाद हल्दी को बाजार में बेचने या भंडारण के लिए तैयार करना जरूरी है:
प्रोसेसिंग:
- कंदों को अच्छे से धोकर सुखाएं।
- पॉलिश करें, ताकि रंग और चमक बढ़े।
- गुणवत्ता के आधार पर ग्रेडिंग करें।
भंडारण:
- बीज के लिए स्वस्थ कंद चुनें।
- कंदों को 0.2% बाविस्टीन और 0.2% क्लोरोपाइरीफॉस के घोल में 30 मिनट डुबोएं, फिर छाया में सुखाएं।
- मिट्टी में 3-5 सेमी गहरा गड्ढा बनाएं, भूसे की परत बिछाएं, कंद रखें, और ऊपर से घास या बांस की पट्टियों से ढक दें। गड्ढे के चारों ओर 15-20 सेमी ऊंची मेड़ बनाएं।
अस्वीकरण : यह जानकारी कृषि विज्ञान केंद्रों, भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान, और कृषि विभाग के स्रोतों पर आधारित है। खेती शुरू करने से पहले अपने क्षेत्र के कृषि विशेषज्ञ से सलाह लें।
स्रोत:
- ICAR-भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान
- कृषि विभाग, भारत सरकार
- नेशनल हॉर्टिकल्चर बोर्ड