फरवरी और मार्च में विशेषकर मार्च माह में गर्म मौसम की शुरुआत हो जाती है, जिससे भिंडी (Ladyfinger) गर्मियों की स्वादिष्ट फसल बन जाती है। क्योकि गर्मियों में खट्टा सब्जी का स्वाद लाजवाब होती है और यदि ये सब्जी भिंडी हो जाये तो और क्या कहना ? स्वाद और बढ़ जाती है। इसलिए इस समय भिंडी सब्जी की मांग बाज़ार में बढ़ जाती है। यह समय भिंडी की खेती (Ladyfinger Farming)करने का सही समय बन जाता है।
भिंडी की खेती (Ladyfinger Farming):-
इस समय यदि फरवरी अंत में और मार्च के मध्य में आप भिंडी की खेती (Ladyfinger Farming) करेंगे तो बहुत अच्छे आपको रेट मिलेंगे। इस समय भिंडी (Ladyfinger) की फसल से चाहे फुटकर रेट हो या थोक रेट की बात करें ,तो फुटकर रेट 50 से 60 रुपए और थोक रेट लगभग लगभग 30 से लेकर ₹35 प्रति किलोग्राम रेट मिलने वाला है तो आप जरूर इस समय भिंडी को लगाएं। अब क्यों? क्योंकि कम लागत है। दूसरी बात लागत कम के साथ साथ कम सिंचाई के साधन, कम खाद दवाइयों की आवश्यकता पड़ेगी।
क्योंकि ठंड के दिनों पर पौधा अपनी चाल नहीं पकड़ पाता है और पौधा में अच्छे से बढ़वार नहीं होता। लेकिन इस समय आप भिंडी की खेती करेंगे ना? तो आप यह मान लीजिए लगभग लगभग डेढ़ से ₹2 लाख बड़े आराम से कमाई कर सकते हैं और आपको 5 से 30000 रुपए ही अधिकतम लागत लगने वाली है।
इसे बहुरंगी सब्जी नाम से भी जाना जाता है, यह अपने अनोखे स्वाद और पोषण मूल्य के लिए भी बेशकीमती है। तो आईये भिंडी की खेती (ladyfinger farming) के बारे जानने से पहले इसके फायदे जानते है –
भिंडी (Ladyfinger) खाने के फायदे :-
- इस सब्जी में उच्च फाइबर होती है,जो पाचन में सहायता करता है और आंत के स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है।
- यह विटामिन और खनिजों से भरपूर होती है। इसमें उपस्थित विटामिन सी प्रतिरक्षा को बढ़ाता है और विटामिन स्वस्थ हड्डियों को बढ़ावा देता है।
- इससे रक्त शर्करा को प्रबंधित करने में मदद मिल सकती है और इसमें उपस्थित फाइबर सामग्री रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करती है।
- इसमें उपस्थित फाइबर खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करने और हृदय स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।
- यह एंटीऑक्सीडेंट का अच्छा स्रोत है, जो कोशिकाओं को क्षति से बचा सकता है और पुरानी बीमारियों के खतरे को कम कर सकता है।
भिंडी खाने के कुछ हानि :-
भिंडी (Ladyfinger) सब्जी के रूप में, इसका आनंद पूरे साल उठाया जा सकता है, जब तक यह ताज़ा है। हालाँकि, पीक सीज़न आम तौर पर गर्मी के महीनों (जून-अगस्त) में पड़ता है जब फलियाँ सबसे अधिक कोमल और स्वादिष्ट होती हैं।हालांकि ,इसे आम तौर पर सुरक्षित माना जाता है, लेकिन भिंडी का सेवन कुछ मामलों में कुछ संभावित चिंताएं पैदा कर सकता है:
- इसका अधिक मात्रा में खाने पर उच्च फाइबर सामग्री से सूजन और गैस हो सकती है।
- गुर्दे की पथरी के पीड़ित व्यक्तियों को भिंडी में ऑक्सालेट की उपस्थिति के कारण इसका सेवन कम करना चाहिए।
- कुछ व्यक्तियों को भिंडी से एलर्जी हो सकती है, जिसमें खुजली, पित्ती या सूजन जैसे लक्षण अनुभव हो सकते हैं।
खेत की तैयारी :-
भिंडी की खेती (Ladyfinger Farming) के लिए खेत तैयार करते समय आपको यह ध्यान रखना होगा कि मिट्टी जितनी भुरभुरी होगी, आपकी फसल को उतना ही फायदा होगा। क्योंकि आपका खेत जितना उपजाऊ होगा उसकी उर्वरता उतनी ही अच्छी होगी। फिर आप चाहें तो अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद से भी जैविक खेती कर सकते हैं। अर्थात यदि उर्वरता है तो उर्वरकों की मात्रा कम कर दें। जैविक घटक उर्वरकों का प्रयोग करें ।
बोवाई विधि :-
दोस्तों , आप भिंडी की खेती साधारण विधि से भी कर सकते हैं। यदि आप बेड या क्यारी विधि से कर रहे है ,तो बेड की चौडाई आपको तीन फिट रखनी है। वेट से वेट की दूरी तीन फिट और वेट की ऊंचाई एक फिट रखनी चाहिए। आपको बीज बुवाई करते समय आपको दो – दो बीजों की पौधे से पौधे की दूरी दो फिट रखनी है और लाइन से लाइन की दूरी तीन फिट रखनी है । इस हिसाब से आपको बीज की बोवाई मैनेज करना है।
भिंडी की खेती में उर्वरक:-
दोस्तों भिंडी की खेती में उर्वरक और गोबर खाद की बात करें,तो बेसल डोज खाद देने के लिए यूरिया 30 किलोग्राम ,50 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट(एसएसपी) और इसके साथ आपको रीजेंट (फिप्रोनिल 0.3% जीआर) तीन किलोग्राम और डीएपी 15 किलोग्राम इन सब को मिक्स कर लेना है और आपके पास सस्ते में गोबर की खाद उपलब्ध हो,तो 1 से 2 ट्रॉली आपको गोबर की खाद भी ले लेना है। इन सभी को मिक्स करके खेत में दे दीजिए और फिर आप बुवाई कर दीजिए।
स्प्रिंग शेड्यूल :-
भिंडी की फसल पर कीट -व्याधि वसंत ऋतु की एक बड़ी समस्या है। अब यह समस्या क्यों उत्पन्न होती है? क्योंकि इस समय, खासकर मार्च के महीने में, भिंडी की फसल पर धीरे-धीरे गर्मी पड़ने लगती है, इसलिए गर्मी के समय में मुख्य रूप से एफिड जैसिड, थ्रिप्स, सफेद मक्खी, कैटरपिलर, फॉल आर्मी वर्म और फंगस की समस्या देखने को मिलेगी।
भिंडी की फसल फंगस की बात करें तो पाउडरी फफूंदी और डाउनी फफूंदी जैसी समस्याएं काफी आम हैं और कभी-कभी कुकरा रोग, जिसे मोज़ेक वायरस भी कहा जाता है, भिंडी पर बहुत कम होता है। तो, इसके पूर्वानुमान के अनुसार, आपको ऐसी स्थितियों पर स्प्रिंग शेड्यूल चलाने की आवश्यकता है।
- पहला छिड़काव फसल बोने से लगभग 15 से 18 दिन पहले करना होगा, इसके लिए आपको 40 ग्राम एम 45 (मैन्कोजेब 75 प्रतिशत) फंगीसाइड और 40 ग्राम यूपीएल SAAF फंगीसाइड लेना चाहिए, इसे 15 लीटर पानी में घोल लें और इसे स्प्रे करें ।
- इसी प्रकार दूसरे छिड़काव के लिए सोलोमन (साइफ्लुथ्रिन + इमिडाक्लोप्रिड) 10 मिली और SAAF फंगीसाइड (कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP) 40 ग्राम लेकर 30 से 35 दिनों में 15 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
- तीसरा छिड़काव 50 से 55 दिन. रोको फंगीसाइड (थियोफेनेट मिथाइल 70% WP) 40 ग्राम और प्रोफेक्स सुपर (प्रोफेनोफॉस 40% + साइपरमेथ्रिन 4% EC) 25 मिलीलीटर को 15 लीटर पानी में मिलाकर दिन में छिड़काव करें।
- चौथा छिड़काव इसाबियन (एमिनो एसिड) 70 से 75 दिनों में करें। बायोस्टिमुलेंट 25 मिली और फ्लोनिकामिड 50% डब्लूजी 5 ग्राम को 15 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
- पाँचवाँ स्प्रे 90 से 95 दिनों के बाद लैम्बडासाइहेलोथ्रिन 5% ईसी 30 घटक और एसिटामिप्रिड 20% एसपी 10 ग्राम को 15 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
लेकिन इसे समय के आधार पर आवश्यकतानुसार स्प्रिंग शेड्यूल चलाना चाहिए। इनसे सभी समस्याओं और बीमारियों को आसानी से नियंत्रित और खत्म किया जा सकेगा।
यदि आप स्प्रिंग शेड्यूल का पालन करते हैं, तो सबसे बड़ी समस्या उत्पन्न होती है। वह यह कि इसे समय के अनुसार इसे चलाना जरुरी है। यानी अगर आपकी फसल में कोई बीमारी है तो स्प्रिंग शेड्यूल में फफूंदनाशकों का इस्तेमाल करें और अगर कीड़ों का प्रकोप है तो कीटनाशकों का इस्तेमाल करें. यदि फूल एवं फल झड़ रहे हों तो पीजीआर (पौधा वृद्धि नियामक) का छिड़काव करना चाहिए। अगर बिल्कुल भी कोई समस्या न हो तो ऐसी स्थिति में अमीनो एसिड या फोलिक एसिड जैसे प्लांट टॉनिक का इस्तेमाल करना चाहिए।
लेकिन आपका स्प्रे शेड्यूल ऐसा नहीं होना चाहिए कि समस्या कुछ और है और स्प्रे कुछ और हो रहा है। तो ऐसे में आपके फसलका समस्या का निदान नहीं होगा। इसलिए स्प्रे शेड्यूल समय और स्थति को ध्यान में रखकर चलाना आवश्यक है।
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खाद शेड्यूल:-
यदि हम उर्वरकों का प्रयोग सही और संतुलित मात्रा में करेंगे तो न केवल पैदावार बढ़ेगी बल्कि फसल का अच्छा उत्पादन भी मिलेगा। अच्छी उपज पाने के लिए, आपको प्रति एकड़ उपयोग की जाने वाली उर्वरक की मात्रा को दिन के हिसाब से निर्धारित करना होगा। एक एकड़ में खाद डालने का शेड्यूल 15 से 25 दिन का है. यदि फसल बढ़ नहीं रही हो तो पहली खाद 22-25 दिन पर डालनी होती है। अब ऐसी परिस्थितियों में हमारी फसल 22-25 दिनों की होती है।
- तो प्रथम खाद शेड्यूल लिए आपको केवल 15 किलोग्राम यूरिया उर्वरक और तीन किलोग्राम सूक्ष्म पोषक लेना होगा। आपको इन दोनों को मिलाना है और पौधे में जड़ों के चारो ओर रिंग बनाकर खाद देनी है. खाद देने के बाद सिंचाई करनी पड़ती है।
- उर्वरक की दूसरी शेड्यूल तब दी जानी चाहिए जब हमारी फसल लगभग 30 से 40 दिन की हो जाए। इसका मतलब है कि पहले खाद शेड्यूल से 15 दिनों का अंतर रखना। तो इसके लिए आपको दूसरे उर्वरक शेड्यूल में केवल 20 किलोग्राम यूरिया उर्वरक लेना होगा और इसके साथ आपको तीन किलोग्राम जिंक सल्फेट 33% लेना होगा और दोनों को मिलाना होगा। इसके अनुसार आपको पौधे में जड़ों के चारो ओर रिंग बनाकर उर्वरक का प्रयोग करना होगा।
- इसी प्रकार, तीसरी उर्वरक शेड्यूल फसल की जड़ों के पास 10 किलोग्राम ह्यूमिक एसिड और 3 किलोग्राम मैक्रोन्यूट्रिएंट मिलाकर 55 से 60 दिनों में देना है।
- चौथी उर्वरक शेड्यूल में एसएसपी 20 किलोग्राम, यूरिया 20 किलोग्राम तथा पोटाश 10 किलोग्राम मिलाकर पौधों को 70 से 75 दिन में देना है।
- पांचवीं खाद शेड्यूल सागरिका जीआर (प्लांट ग्रोथ प्रमोटर) 10 किलोग्राम और अमोनियम सल्फेट 10 किलोग्राम मिलाकर 90 से 95 दिनों में फसल को देना है।
जैसे-जैसे फसल बढ़ती है, खाद शेड्यूल को उसकी आवश्यकता के अनुसार चलाना पड़ता है। यदि आप आवश्यकता के अनुसार खाद शेड्यूल का पालन करते हैं, तो आपको अच्छी फसल वृद्धि के साथ-साथ अधिक फसल उत्पादन भी मिलेगा।
सिंचाई :-
इसके अलावा दोस्तों बात करते हैं सिंचाई की। यह इस समय देखने लायक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है क्योंकि सर्दियाँ धीरे-धीरे कम होती जा रही हैं और गर्मियाँ धीरे-धीरे बढ़ती जा रही हैं।
इसलिए आपको 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी होगी. लेकिन जो लोग हल्की सिंचाई करते हैं, वे कम अंतर बनाए रखेंगे। आपको जल प्रबंधन का प्रबंध करके चलना चाहिए। यानि सिंचाई तो करनी ही पड़ेगी. अगर आप हल्की सिंचाई करना चाहते हैं तो उसी हिसाब से भिंडी की खेती करेंगे.
लागत और मुनाफा :-
अब ये सभी क्रियाएं करने के बाद बात आती है रेट की, जो भी रेट है, जो बाजार भाव है। आपको होलसेल रेट 30 से 35 रुपये प्रति किलो आसानी से मिल जाएगा. कम से कम हम एक एकड़ में न्यूनतम उपज की बात करें ,तो आप एक एकड़ में कम से कम 60 से 70 और अधिकतम 80 क्विंटल, 65 से 70 क्विंटल तक ले सकते हैं.
मान लीजिए एक एकड़ में खेती की लागत लगभग ₹20,000 से ₹30,000 लागत आने वाली है. इसके अलावा अगर मुनाफे की बात करें तो दोस्तों आप एक एकड़ भिंडी से 1.5 लाख रुपये से लेकर 2 लाख रुपये तक कमा सकते हैं. क्योंकि अगर आप इस समय फरवरी के अंत और मार्च के मध्य के बीच खेती करते हैं तो आपको 40-45 दिनों के बाद बहुत अच्छे दाम मिलने लगेंगे. 40-45 दिनों के बाद फसल पहली कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसलिए इस समय आपको बहुत अच्छे दाम मिलने वाले हैं।
तो दोस्तों यदि आपको यह आर्टिकल ज्ञानवर्धक लगा हो ,तो कमेंट बॉक्स में कमेंट कर जरूर बताये और आपके तरफ से कोई कृषि सम्बंधित कोई सुझाव हो, तो कमेंट लिखे। धन्यवाद् दोस्तों !!