किसान भाइयों, गर्मी का मौसम आने वाला है और गेहूं की कटाई के बाद हमारे ज्यादातर किसान भाई Moong ki Kheti करना पसंद करते हैं, लेकिन अगर आप मूंग(Moong) की फसल से अच्छा उत्पादन चाहते हैं, तो आपको उर्वरक के साथ-साथ किस्म पर भी सबसे ज्यादा ध्यान देना चाहिए।.
Moong ki Kheti :-
लेकिन गर्मी के मौसम में अक्सर किसान गेहूं की कटाई के बाद पानी की कमी के कारण खेतों को खाली छोड़ देते हैं। हमें खेतों को खाली छोड़ने के बजाय ऐसी फसलें उगानी चाहिए जिनमें कम पानी की आवश्यकता होती है, जिससे हमारी मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और हमें कुछ आय भी होती है।
साथ ही उस फसल की कटाई मानसून का मौसम आने से पहले ही कर लेनी चाहिए. तो इसके लिए मूंग की खेती करना सही रहेगा.
मूंग की खेती(Moong cultivation) के लिए हमें किस किस्म के बीज का चयन करना चाहिए? खेती करते समय आपको कौन सी किस्म चुननी चाहिए? कम सिंचाई में मूंग की खेती से कैसे पा सकते हैं अधिक मुनाफा? इसलिए मूंग की खेती से उचित उपज पाने के लिए आप इस ब्लॉग पोस्ट को एक बार जरूर पढ़ें।
गर्मी के उच्च तापमान में मूंग की खेती करके आप मात्र दो महीने में अधिकतम लाभ कैसे प्राप्त कर सकते हैं? एक एकड़ में कितना बीज बोना चाहिए, कितनी दूरी पर बोना चाहिए, खेत की तैयारी और बुआई के समय कौन सा उर्वरक डालना चाहिए? सिंचाई के दौरान क्या सावधानियां बरतनी चाहिए? इस आर्टिकल में आपको पूरी जानकारी मिलेगी. तो चलिए आगे बढ़ते हैं.
मूंग की खेती के लिए उपयुक्त समय :-
सबसे पहले बात करते हैं गर्मियों में मूंग की खेती (Moong cultivation) के लिए अनुकूल समय की। दोस्तों 15 मार्च से 5 अप्रैल के आसपास का समय बहुत अच्छा माना जाता है, खासकर मार्च का महीना उपयुक्त होता है या जैसे ही आप गेहूं की कटाई के बाद मूंग की खेती शुरू करते हैं। अगर आप किसान हैं तो गेहूं की कटाई के तुरंत बाद मूंग की बुआई करें. गर्मी और सर्दी के मौसम में मूंग की बुआई करके आप अच्छा मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं.
खेत की तैयारी और उपयुक्त भूमि:-
भूमि और खेत की तैयारी की बात करें तो अगर आपकी भूमि हल्की, बलुई दोमट, काली मिट्टी, काली दोमट या चिकनी दोमट मिट्टी है तो भी आप मूंग की खेती कर सकते हैं। खेत की तैयारी में आपको 1 से 2 बार कल्टीवेटर चलाना पड़ेगा. आपको हैरो की मदद से मिट्टी को भुरभुरा कर लेना है और फिर बुआई करनी है. इसमें बहुत अधिक समस्या नहीं है या हल की तरह गहराई तक जाने वाली पाइपलाइन की आवश्यकता नहीं है। आपको हल्की जुताई करनी चाहिए.
क्योंकि मूंग की खेती हल्की, भारी, मध्यम सभी प्रकार की भूमि में उपयुक्त होती है। इसके लिए मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 7.5 तक उपयुक्त होता है. लेकिन यदि आपकी मिट्टी का पीएच मान 7.5 से अधिक है तो आपको बुआई के समय 50 किलोग्राम जिप्सम का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। इससे एक एकड़ में कम से कम डेढ़ से दो क्विंटल तक पैदावार बढ़ने वाली है.
मूंग की उन्नत किस्में :-
वैसे तो भारत में मूंग(moong) की सैकड़ों किस्में मिल जाएंगी, जिन्हें आप बो सकते हैं. लेकिन पैदावार उचित नहीं होगी. आपको केवल उन्हीं किस्मों का चयन करना चाहिए जिनका उत्पादन अच्छा हो। यहां हम आपको मूंग की कुछ ऐसी किस्मों के बारे में बताएंगे, जो बहुत अच्छी उपज देने वाली किस्में हैं ,जिसमें से –
सम्राट
मूंग की उत्तम किस्मों में से एक सम्राट किस्म है। इस किस्म की फसल अवधि 75 दिन है।
आईपीएम 205-07
मूंग की दूसरी किस्म आईपीएम 205-07 (विराट) है, इसकी फसल अवधि 65 दिन है और इसकी फलियाँ एक साथ पकती हैं।
आईपीएम 410-3
अगली अच्छी किस्म आईपीएम 410-3 (शिखा) है, इसकी फसल अवधि भी 65 दिन है और इसकी फलियाँ एक साथ पकती हैं और इसकी फलियाँ सर्दियों में भी एक साथ पकती हैं।
कल्याणी
मूंग की अगली किस्म कल्याणी है। इसकी फसल अवधि 50 से 55 दिन है।
इसलिए आपको उन किस्मों का चयन करना चाहिए जो 60 से 65 दिनों के भीतर कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं और जिनकी फलियाँ एक साथ पकती हैं जैसे विराट और शिखा किस्में।
कल्चर उपयोग:-
दलहनी खेती में राइजोबियम कल्चर बहुत महत्वपूर्ण है। अगर आप इसका उपयोग बीज उपचार में करना चाहते हैं तो आप इसका उपयोग बीज उपचार में कर सकते हैं या फिर आप चाहें तो इसका उपयोग वर्मी कम्पोस्ट या गोबर की खाद डालने पर छिड़काव करने में कर सकते हैं।
घोल बनाकर छिड़काव करें और फावड़े की सहायता से पलटकर दो दिन के लिए छोड़ दें और फिर खाद का छिड़काव करें।
कम्पोस्ट खाद और उर्वरक उपयोग :-
बुआई के समय हम कौन से उर्वरकों का उपयोग कर सकते हैं? तो किसान भाइयों अगर मूंग की खेती में रासायनिक उर्वरक की बात करें तो नाइट्रोजन की आवश्यकता बुआई के समय होती है। अतः प्रति एकड़ लगभग 10 से 12 किलोग्राम यूरिया,लगभग 15 से 16 किलोग्राम फास्फोरस तथा लगभग 8 से 10 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है।
यदि आप डीएपी उर्वरक का उपयोग कर रहे हैं तो 35 से 40 किलोग्राम डीएपी की आवश्यकता होती है। इसके अलावा आप 4 से 5 किलो सल्फर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. अब आधार खाद की बात करें तो प्रति एकड़ 3 से 4 ट्रॉली सड़े हुए गोबर की आवश्यकता होती है, चाहे फसल कोई भी हो।
अगर आपने पिछली खेती में गोबर की खाद का इस्तेमाल किया है तो कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन अगर आपने इसका इस्तेमाल नहीं किया है तो गोबर की खाद का इस्तेमाल जरूर करें.
सिंचाईं :-
मूंग की खेती (Moong cultivation) से अधिक मात्रा में उत्पादन प्राप्त करने के लिए सिंचाई महत्वपूर्ण है। क्योंकि अगर आप गर्मी में या जायद पर मूंग की खेती करते हैं, तो सिंचाई की जरूरत पड़ती है.
गर्मियों में मूंग की खेती के लिए आमतौर पर चार से पांच सिंचाई की आवश्यकता होती है. हालाँकि, सिंचाई भूमि के प्रकार पर भी निर्भर करती है। आमतौर पर आपको 10 से 12 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए. अधिकतम 15 दिन का अंतर रखकर सिंचाई कर सकते हैं।
खरपतवार नियंत्रण:-
मूंग(Moong) फसल खरपतवार नियंत्रण की बात करें तो यदि निराई-गुड़ाई के लिए मजदूर उपलब्ध हों तो निराई-गुड़ाई सबसे अच्छा विकल्प है। फिर यदि मजदूर उपलब्ध न हो तो बुआई के 1 से 2 दिन के भीतर प्री इमरजेंस खरपतवार नाशक का प्रयोग किया जा सकता है।
इसके लिए आप प्री इमरजेंस खरपतवार नाशक पेंडिमेथालिन 30% EC या वेलोर 32% EC (पेंडिमेथालिन 30% + इमाजेथापायर 2% EC) को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव कर सकते हैं. लेकिन इसका छिड़काव आपको बुआई के तुरंत बाद करना चाहिए. यदि वहां खरपतवार नहीं उगते तो किसी भी खरपतवारनाशी का छिड़काव करने की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है।
कीट व्याधि प्रबंधन :-
दलहनी फसलें कवक, बैक्टीरिया, वायरस और अन्य कारकों से होने वाली बीमारियों के प्रति बहुत संवेदनशील होती हैं। मूंग और उड़द के फलों जैसी दलहनी फसलों के बीजों में मौजूद विशेष प्रकार के प्रोटीन और अन्य पदार्थ कई बीमारियों के कीटाणुओं को आकर्षित करते हैं, इसलिए मूंग की फसलों ( Moong Crops) पर पौध सड़न, पत्ती धब्बा, भभूतिया रोग, पीला मोज़ेक का प्रकोप अक्सर देखा जाता है। अतः अधिक उत्पादन एवं स्वस्थ बीजों के लिए इन रोगों का समय पर प्रबंधन आवश्यक है।
इसी प्रकार, ग्रीष्मकालीन मूंग( Summer Moong) की फसल पर भी फुदका, सफेद मक्खियाँ, कंबल कीड़े और फली भेदक कीटों का हमला होता है। इन पर समय रहते नियंत्रण करना आवश्यक है, अन्यथा उत्पादन प्रभावित होता है।
प्रबंधन :-
- ग्रीष्मकालीन जुताई करने से रोगकारक निवेशद्रव्य कम हो जाता है।
- रोगग्रस्त पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दे।
- जल्द पकने वाली अवधि के किस्मों को समय पर बोवाई करें।
- बीजोपचार अवश्य करें।
- खेत के मेढ़ों को साफ-सफाई रखें।
रासायनिक नियंत्रण के उपाय :-
- सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए 200 मिलीलीटर स्पाइरोमेसिफेन ओबेरॉन (स्पिरोमेसिफ़ेन 22.9% एससी) या 400-500 मिलीलीटर पायरीप्रोक्सीफेन 10% ईसी (लेनो) को 200 लीटर पानी में प्रति एकड़ घोलकर छिड़काव कर सकते है।
- मूंग फसल(Moong Crops) पर फफूंद नियंत्रण के फफूंदनाशी कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP का प्रयोग 300 ग्राम प्रति एकड़ की दर से भी कर सकते हैं।
- फुदका कीट नियंत्रण हेतु 250 मिलीलीटर बुप्रोफेज़ीन 23.10% + फिप्रोनिल 3.85 SC मिला कर भी छिड़काव कर सकते हैं।
- दलहनी फसलों में इल्ली नियंत्रण के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी 80 से 90 ग्राम प्रति एकड़ की दर से इस्तेमाल कर सकते हैं।
कटाई गहाई :-
मूंग की फसल को करीब 80-90 प्रतिशत फलियाँ पकने के बाद कटाई करना चाहिए। गहाई पश्चात् दानों को अच्छी तरह सुखाकर भंडारित करना चाहिए।
लागत मूल्य :-
खेत की तैयारी में लगभग 2500 रुपये का खर्च आएगा। यदि आप दो बार गहरी जुताई करें और एक बार रोटावेटर चलाएं तब । आपको रोटावेटर का उपयोग तभी करना चाहिए जब आपके खेत में मिट्टी के बड़े-बड़े ढेर हों, अन्यथा रोटावेटर पर अपना पैसा खर्च न करें।
रासायनिक खाद व उर्वरक की कीमत लगभग एक हजार रुपये होगी. स्प्रे शेड्यूल पर हमारा खर्च 1200 रुपये आसपास होगा। इसमें खरपतवारनाशी की लागत भी शामिल है।
खरपतवारनाशी का प्रयोग हम बीज बोने के 48 घंटे के अंदर कर सकते हैं। सीड ड्रिल की कीमत हमें ₹500 के आसपास होगी। मूंग की कटाई में ₹1500 का खर्च आएगा. इन सभी खर्चों को जोड़कर एक एकड़ मूंग की खेती में हमारी लागत 9000 रुपये से 10000 रुपये के बीच आ सकती है.