Papita Ki Kheti । पपीते की उन्नत वैज्ञानिक खेती !

हैलो दोस्तो नमस्कार स्वागत है आपका Papita Ki Kheti की इस आर्टिकल में । दोस्तों आज की इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से पपीते की उन्नत वैज्ञानिक खेती की एटूजेड सम्पूर्ण जानकारी शेयर करने वाले हैं। पपीते की खेती कब और कैसे करना चाहिए। कैसे प्लांटेशन करना है।

एक एकड़ पर कितने पौधे को लगाना चाहिए। उन्नतशील किस्मों के बारे में पूरी जानकारी देंगे। खेत की तैयारी किस प्रकार करना है? यदि वैज्ञानिक तरीके से पपाया फार्मिंग कर रहे हैं तो मल्चिंग कौनसी लगाएं, ड्रिप कौनसी लगाएं, प्लांटेशन करते समय कौनसी सूक्ष्म तत्व की पूर्ति हमको करनी चाहिए ।

papita ki kheti
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साथ ही “Papita Ki Kheti “आर्टिकल के माध्यम से हम आपको जानकारी देंगे। पपीता की फसल में लगने वाले लीफ कर्ल एलो मौजेक वायरस जैसे तमाम प्रकार की समस्या चाहे आद्र गलन हो या फिर कन्द गलन की समस्या हो या पौधा बीच से सूखकर एकदम मर जाते हैं तो जो बीमारियां आती हैं उन सभी का ब्यौरा, डेटा एकदम विस्तार से सम्पूर्ण जानकारी बिल्कुल डीटेल्स में इस आर्टिकल के माध्यम से बताएंगे।

Papita Ki Kheti में ज्यादा से ज्यादा उत्पादन कैसे निकाल सकते हैं। उत्पादन निकालने के लिए किन किन खाद की पूर्ति करनी पड़ती है। न्यूट्रिशन कौन सी ज्यादा अच्छी, बेहतर, सस्ती हो, पर जानकारी देने की कोशिश करेंगे। तो आईये दोस्तों जानते है पपीता की खेती के बारें में।

Papita Ki Kheti के लिए अनुकूल समय :-

सबसे पहले बात करते हैं अनुकूल समय किसानों में सबसे बड़ी कन्फ्यूजन है कि कौन से समय हमको पपीता की खेती करना चाहिए। कुछ किसान भाई पपीते की खेती कर तो लेते हैं। लेकिन किसान भाई फसल को नहीं संभाल पाते हैं, रोग बीमारियों कंट्रोल नहीं कर पाते हैं और सबसे बड़ी प्रॉब्लम है बाजार भाव। यानी मार्केट रेट ही नहीं मिल पाता है।

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तो कौन से समय पर हम Papita Ki Kheti करें, आइए समझते हैं। तो देखिए यदि आप बरसात के दिनों पर पपीता की खेती कर रहे हैं तो जून और जुलाई महीना काफी अनुकूल और परफेक्ट माना जाता है। जैसे ही बरसात स्टार्ट होती है, तो बरसात के लिए जून जुलाई काफी अनुकूल समय माना जाता है।

लेकिन गर्मियों के लिए यदि आपको परफेक्ट टाइम की बात करें तो स्पेशल अक्टूबर और नवंबर महीना काफी अनुकूल माना जाता है। अक्टूबर नवंबर महीने पर आप पपीता को लगा सकते हैं। वैसे खरीफ सीजन भी काफी अच्छा माना जाता है। साथ ही रबी सीजन भी काफी अच्छा रहता है। यदि आप रबी सीजन पर भी खेती करते हैं तो काफी अच्छा आपको बाजार भाव देखने के लिए मिलेगा।

उपयुक्त भूमि का चुनाव :-

आइए बात करते हैं उपयुक्त भूमि यानी पपीता की खेती के लिए जो मिटटी होती है कौन सी अनुकूल भूमि है जहां पर सबसे ज्यादा उत्पादन आप पपीते की फसल से निकाल सकते हैं। तो पपीते की खेती तो प्रायः प्राय आप सभी प्रकार की मिट्टी पर कर सकते हैं।

लेकिन ज्यादा उत्पादन निकालने के लिए काली मिट्टी,काली दोमट, चिकनी दोमट मिट्टी काफी उपयुक्त होती है। वैसे बालू दोमट भी काफी अच्छी मानी जाती है। यदि आपकी भूमि ज्यादा काली मिट्टी है तो आप काफी अच्छा उत्पादन निकाल सकते हैं।

यदि पीली मिट्टी और पीली हल्की भूमि भी है, तो किसान भाई पपीते की फसल से उतना ही अच्छा उत्पादन निकाल सकते हैं। बस इसमें उत्तम जलनिकास का प्रबंध होना चाहिए और खेत पर जल भराव ना हो। क्यों? क्योंकि यदि खेत पर पानी भरेगा तो पपीता की फसल एकदम पूरी की पूरी नष्ट हो जाएगी। तो इसीलिए खेत पर पानी जमाव ना हो, खेत पर पानी भरना नहीं चाहिए। इसके लिए उत्तम जलनिकास का प्रबंध होना चाहिए।

पपीता की खेती के लिए मृदा की पीएच मान 5 से 7 के मध्य यदि रहती है, तो काफी अनुकूल और काफी पॉजिटिव रिजल्ट प्राप्त होते हैं। लेकिन भाई साहब, खारा पानी है और अधिक एल्कलाइन है तो इसके लिए आप जिप्सम का प्रयोग कर सकते हैं। अब जिप्सम में हाई सल्फर होती है, अधिक मात्रा पर सल्फर होती है, सस्ता होता है। तो एक एकड़ पर खेत की तैयारी करते समय 50 किलोग्राम जिप्सम का आप प्रयोग कर सकते हैं।

जलवायु और तापमान :-

आइए बात करते हैं जलवायु और तापमान की, तो Papita Ki Kheti करने के लिए जो जलवायु स्थिति सभी जगह है सूटेबल नहीं है जिसमे कि आप पपीता की खेती कर पाएं तो बात करते हैं कौनसी जलवायु पर कैसा तापमान होना चाहिए। फ्लावरिंग स्टेज पर कैसा तापक्रम होना चाहिए।

यह जरूरी और महत्वपूर्ण विषय है। तो जलवायु की बात करें तो पपीता की खेती मध्यम गर्म जलवायु के लिए फसल है और इसके लिए न्यूनतम तापमान 16 से 17 डिग्री सेल्सियस काफी अनुकूल माना जाता है और अधिकतम की बात करें तो 35, 36, 37 डिग्री सेल्सियस तक चल जाता है। बस फ्लावरिंग स्टेज पर तापमान 40- 42डिग्री सेल्सियस पहुँचती है, तो फूल गिरने की समस्या आती है।

तो इसके लिए यह जरुरी है कि जब पपीता की फसल एक साथ जब फल से फूल बढ़वार ले रहा हो तब अनुकूल तापमान 28 से 30 डिग्री सेल्सियस यदि रहता है, तब किसान भाइयों हमारी फसल काफी अच्छा परफॉमेंस देती है, बढ़वार अच्छी लेती है और फूल गिरने की समस्या बिल्कुल भी नहीं आती है।

खेत की तैयारी:-

अब बात कर लेते हैं खेत की तैयारी यानी फार्म प्रिपरेशन तो जैसा कि हम पपीता की खेती के बारें में स्मार्ट तरीके से आपको जानकारी शेयर कर रहे हैं। उसी स्मार्ट तरीके से हम बताते हैं कि खेत की तैयारी किस प्रकार करना है।आइए सरल और आसान शब्दों में समझते हैं।

तो खेत के चारों तरफ साफ सफाई होना बहुत ही जरूरी है। क्यों है भाई साहब? क्योंकि यदि खरपतवार ज्यादा रहते हैं, तो खेत के चारों ओर तो एफिड और वाइट फ्लाई जैसे कीड़ें बढ़ने में रोग को फैलने में और चार चांद लग जाते तो इसीलिए खेत की चारों तरफ साफ सफाई होना चाहिए।

फेंसिंग होना बहुत ही जरूरी जिससे नील गाय या फिर कोई पशु हमारी फसल को क्षतिग्रस्त या नुकसान न पहुंचाए। तो हम यहां खेत की तैयारी के ऊपर हम बात कर रहे है । तो सर्वप्रथम मध्यम गहराई में चलने वाले जैसे कल्टीवेटर लगभग 10 फ़ीट और तोता हल से आपको पहली और दूसरी जुताई करानी चाहिए।

आप गहरी जुताई प्लाऊ से भी खेत की तैयारी करा सकते हैं। आपकी मिट्टी जैसी हो उस हिसाब से पहली और दूसरी जुताई करानी चाहिए। उसके बाद आपको दो ट्रॉली गोबर की खाद पूरे खेत में बिखेर दीजिए और मिट्टी को भुरभुरी कराने वाले यंत्र जैसे रोटावेटर है या फिर हैरो से ठीक तरीके से मिट्टी को एकदम भुरभुरी करा लीजिए और पाटा लगाकर खेत को समतल बना लीजिये। क्योकि जितना ज्यादा समतल होगा, उतना ही अच्छे से हमारी फसल बढ़वार करेगी।

पपीते के उन्नत किस्म :-

पपीते की वैरायटी यानी किस्मों की ऊपर बात करें तो अच्छी किस्में जो हाइब्रिड वैरायटी होती हैं। इन किस्मों को आप लगाते हैं तो ना केवल मार्केटिंग डिमांड हमेशा अच्छी रहती है। बल्कि इन किस्मों की फलों का वजन और प्रति पौधा काफी बड़ी मात्रा की देखने के लिए मिलते हैं, तो इसके लिए सबसे बेस्ट और सबसे बढ़िया किस्में ताइवानी रेड लेडी 786 के नाम से आती है।

अब बारी है वीएनआर की तो इसमें विनायक के नाम से आती है और वीएनआर की सबनम जैसी किस्मों को आप लगा सकते हैं और टीसू कल्चर में तैयार किए गए पौधे को भी आप पौध रोपण कर सकते हैं और जहां से भी आप वैरायटी को खरीद रहे हैं, या आप पौधे ला रहे हैं वो ऑर्गेनिक और जेनुइन नर्सरी होनी चाहिए। यदि नर्सरी से आपको पौधे खरीदते है, तो भी आपको काफी अच्छा उत्पादन मिलेगी।

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नई संकर किस्में उन्नत गाइनोडायोसियस /उभयलिंगी किस्में आती है ,जिसमे निम्न महत्वपूर्ण किस्में पूसा नन्हा, पूसा डेलिशियस, सी. ओ- 7 पूसा मैजेस्टी, सूर्या और अर्का प्रभात आदि। पपीता की खेती से अच्छी उत्पादन के लिए किस्मों का चयन महत्त्वपूर्ण है,तो आईये जानते है पपीते के इन किस्मों के बारें में –

पूसा जायंट किस्म :-

पपीते की यह किस्म 1981 में विकसित की गई थी. इसकी फल मध्यम और छोटे आकार के होते हैं. इस किस्म के पौधे जब जमीन से 92 से.मी तक बड़े होते है, तब इसमें फल लगना प्रारम्भ हो जाती है।

अर्का प्रभात:-

पपीते की अर्का प्रभात किस्म एक उभयलिंगी प्रकृति की किस्म है. इसे सबसे बेहतरीन किस्मों में से एक मानी जाती है. या कम लंबाई पर लगभग 60-70 सेमी पर ही फल लगने शुरू हो जाते हैं। क्योकि यह उभयलिंगी है, इसलिए इसका बीज-उत्पादन करना भी आसान है. इसके फल का औसतन वजन 900-1200 ग्राम तक होता है तथा इसकी गुणवत्ता काफी अच्छी होती है।

सूर्या किस्म :-

पपीते की यह किस्म से 60 से 70 किलोग्राम फल का उत्पादन मिलता है. इसकी की भंडारण क्षमता बहुत अधिक होती है.इसलिए किसान इसकी खेती अधिक करते है।

पूसा डेलिशियस किस्म:-

पपीते की इस किस्म को 1986 में विकसित की गई थी. इसके फल माध्यम और छोटे आकार के होते हैं. जब इसके पौधे जमीन से 80 से.मी बढ़ जाते है, तब फल लगना शुरू हो जाती है. इसके पौधे की लम्बाई 216 सेंटीमीटर ऊँची होती है।

पूसा ड्वार्फ:-

इसके पौधे छोटे होते हैं, जैसा इसका नाम है, वैसा ही फल अंडाकार होते हैं इसका वजन 1.0 से 2.0 किलोग्राम तक होता है और इसकी उत्पादन लगभग 40 से 50 किलोग्राम प्रति पौधा होता है. यह किस्म सघन बागवानी के लिए सबसे बेहतरीन है।

पौध रोपण:-

प्लांटेशन के ऊपर दोस्तो बात करते हैं तो किस प्रकार आपको पौध रोपण करना है। जहां पर आप पौध रोपण करें तो वहां दो बाई दो का गड्ढा यानी दो फीट चौड़ा और दो फिट गहरा गड्ढा खोद लेना है। उसके बाद आपको 30 दिन की तेज धूप लगाना चाहिए और जैसे ही 30 दिन की तेज धूप लग जाती है .

जो हमने कॉम्बीनेशन खादों के नाम बतलाए हैं उनको ठीक तरीके दोस्तो आपको मिक्स करना है और पौध रोपण करते समय आधी मिट्टी और आधी खाद को मिलाकर जो डोज बतलाया है वह पूरे एक एकड़ की दर से बतलाया है और एक एकड़ में 43 हज़ार 560 स्केयर फिट होते हैं तो एक एक पौधे की पौध रोपण आपको करना है। पौधा एकदम सीधा हो, पौधा झुके ना, गिरे ना और टूटे ना तो इसके लिए छोटे छोटे बांस के टुकड़े गड़ा दीजिए और पौधे को बांध दीजिए और पौध रोपण करने के बाद दोस्तो आपको हल्की सी सिंचाई करनी चाहिए।

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अब बात करते हैं दोस्तों कितनी दूरी पर हमको पपीते का पौध रोपण करना चाहिए। यदि आप पौधे से पौधे की दूरी छह फिट रखते हैं और लॉन से लॉन की दूरी सात फिट रखते हैं तो एक एकड़ में 1450 पौधे लगने वाले हैं। अच्छा उत्पादन के लिए सही और अच्छा डिस्टेंस भी यही है।

लाइन से लाइन की दूरी सात फिट और पौधे से पौधे की दूरी छह फिट आपको रखनी चाहिए। लेकिन फिर भी यदि आप नर्सरी से पौधे खरीद रहें है ,तो 15 -20 पौधे आप एक्स्ट्रा में ही खरीद के लाएं।

बीजोपचार और खाद का प्रयोग :-

इसके अलावा बीज उपचार यानी जो प्लांट से ट्रीटमेंट की ऊपर बात करें तो इसके लिए आपको एक काम करना है कि जब भी आप पौध रोपण कर रहे हों तो 500 ग्राम ट्राइकोडर्मा लेना है। जो पाउडर फॉम वाला आता है ,तो इसके घोल में पौधे को डुबो डुबो करके आपको पौधरोपण करना है।

अब बेसल डोज के ऊपर दोस्तो बात करते हैं कि जब आप पौध रोपण कर रहे हों या खेत की तैयारी कर रहे हों तो उस समय कौन कौन सी खाद का प्रयोग करना चाहिए। तो ऐसी कंडीशन पर दोस्तो आपको प्रति एकड़ डीएपी 40 किलोग्राम, एसएसपी 100 किलोग्राम, एमओपी 30 किलो और गोबर की खाद एकदम पकी हुई, सड़ी हुई खाद 2 से 3 ट्रॉली इस्तेमाल करना है और पाँच क्विंटल आपको सरसों की खली इस्तेमाल करनी चाहिए। तो इन सभी खादों को जो कि बेसल डोज के रूप में इस्तेमाल करेंगे।तो इसे आप पौध रोपण के समय उचित मात्रा में उपयोग करेंगे। तोइससे पौधा ठीक तरीके से बढ़वार लेने वाला है।

बैड तैयार:-

अब बात करते हैं बैड तैयार तो बैड किस प्रकार आपको तैयार कराना चाहिए। आइए दोस्तो समझते हैं बैडविधि से खेती करने पर जलभराव नहीं होता है और जो गलन की समस्या आती है उससे भी काफी सुरक्षा देखने के लिए मिलता है तो किस प्रकार आपको बैड तैयार कराना है। बैड से बैड की दूरी सात फिट, बैड की चौड़ाई ढाई फिट और बैड की ऊंचाई एक फिट रखनी चाहिए। पपीते की खेती आप कर रहे हैं तो सिंचाई के लिए 20 एमएम बटन वाली ड्रिप को लगवा सकते हैं।

पौध की सिंचाई :-

अब बात करते हैं पपीता की खेती में सिंचाई यानी इरिगेशन की, तो पपीते की फसल पर ज्यादा सिंचाई नहीं बल्कि हल्की हल्की सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है और ज्यादा सिंचाई करने से निमेटोड की समस्या आती है। पीलापन की समस्या देखने के लिए मिलती है और पौधा उतनी अच्छी बढ़वार नहीं ले पाता है ,तो इसके लिए यदि पपीते की फसल पर निमेटोड की समस्या आती है। इसलिए पपीते की फसल की सिंचाई ड्रिप से करें या हल्की सिंचाई दें।


अब रही बात सिंचाई किस प्रकार करें यदि भूमि भारी है, काली , काली दोमट या चिकनी दोमट भूमि है। तो मान लीजिए दोस्तो लगभग 2 से 3 दिनों के अंतराल पर ड्रिप से सिंचाई करनी चाहिए। सिंचाई का अंतराल आपको लगभग चार से लेकर आठ दिनों के मध्य रखनी है। वैसे सिंचाई ड्रिप एरिगेशन, फ्लैट एरिगेशन दोनों जो सिंचाई के माध्यम हैं यह दोनों वेस्ट हैं। बाकी हल्की सिंचाई आपको अपने पपीते की क्रॉप पर करनी चाहिए।

निमेटोड का नियंत्रण :-

दोस्तो तो इसके लिए बायर कंपनी की वेलम प्राइम यानि कि फ्लुओपाइरम 34.48% एससी एक नेमाटाइड है। फसल को लम्बे समय तक सुरक्षा प्रदान करता हैं।इसको 2 से 2.5 मिली प्रति लीटर पानी के हिसाब से 250 -300 मिली प्रति एकड़ उपयोग कर सकते है। आपको इसे सोयल एप्लीकेशन के रूप में उपयोग कर सकते है । दोस्तों पपीते की जडें होती हैं, तो जड़ों के बीच में जो गांठे बन जाती हैं उसे हम निमेटोड कहते हैं तो इसको कंट्रोल करना बहुत ज्यादा जरूरी है।

खरपतवार नियंत्रण:-

खरपतवार नियंत्रण के ऊपर दोस्तों बात करते हैं तो इसके लिए ज्यादा बेस्ट है, निराई गुड़ाई करना। तो इसके नियंत्रण के लिए बेहतर इंटरक्रॉपिंग फसल ले। आप लहसुन प्याज को इंटरक्रॉपिंग फसल कर सकते हैं, आलू को ग्रो कर सकते हैं। हल्दी है मैथी, धनिया, मूली, गाजर, चुकंदर और मूंग, उड़द और दोस्तों साथ ही मटर को आप इंटरक्रॉपिंग फसल कर सकते हैं या फिर जो फसलें लगभग जिन फसलों की हाइट ढाई फीट से कम रहती है उन फसलों को आप टॉपिंग में और खरपतवार के लिए बीच बीच में आप निराई गुड़ाई कराते रहना चाहिए।

वैसे खरपतवार नियंत्रण के लिए मल्चिंग पेपर भी दोस्तों आप लगा सकते हैं। पपीते की फसल 30 से 35 माइक्रोन का मल्चिंग पेपर आप लगवा सकते। पर बाकी बिना मल्चिंग पेपर पर भी आप सफलता पूर्वक पपीते की खेती कर सकते हैं।

कीट व्याधि नियंत्रण :-

पपीते की फसल पर कई प्रकार की बीमारियां आती हैं। तो कौन कौन सी बीमारी हैं उनके बारे में समझते हैं। फिर उनके रोकथाम के बारे में समझेंगे। दोस्तों बीमारी के ऊपर बात करें तो प्रमुख रूप से बैक्टीरिया बिल्ट, तना सडऩ, फल फटना, फल विगलन और जड़ सड़न के साथ साथ फल गिरने की समस्या देखने के लिए मिलती है।

सफेद मक्खी का प्रकोप या फिर मिलीबग का प्रकोप है। तो सफेद मक्खी और मिलीबग से छुटकारा पाने के लिए प्रति लीटर पानी में 1.5 से 2 मिलीलीटर बुप्रोफेजिन 25 एससी मिला कर छिड़काव करें। इसके अतिरिक्त प्रति लीटर पानी में 2 मिलीलीटर इमिडाक्लोप्रिड मिलाकर भी छिड़काव कर सकते है।

इसके अतिरिक्त प्रति लीटर पानी में 2 मिलीलीटर क्लोरपायरीफॉस 20 ईसी या डाइमेथोएट 30 ईसी मिलाकर छिड़काव करने से भी मिलीबग से निजात मिल सकता है।

पपीते की फसल पर पाउडरी मिली डाउनी मिली रस्ट ब्लाइट, लीफ स्पॉट आद्र गलन की समस्या है तो इनमें से कोई। जड़ से। इसके अलावा तना गलन, तना सडऩ की समस्या डंपिंग की है। इसके नियंत्रण के लिए मेटालैक्सिल + मेन्कोजेब का घोल बनाकर 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से पौधे के तने के पास मिट्टी में छिड़काव करना चाहिए। ऊंची बेड पर पपीता की खेती करने से भी इस रोग की उग्रता में भारी कमी आती है।

इसके अतिरिक्त कॉपरआक्सीक्लोराईड 2.0 ग्राम प्रति लीटर पानी में या मेन्कोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से रोग की उग्रता में कमी आती है। पपीता की खेती में जल निकास का उचित प्रबंध होना चाहिए। यदि आपके खेत में रोगी पौधा दिखाई दे ,तो पौधों को जड़ सहित उखाड़कर जला देना चाहिए।

निष्कर्ष :-

भारत में Papita Ki Kheti एक आशाजनक उद्यम है, जो पारंपरिक कृषि पद्धतियों को आधुनिक तकनीकों के साथ मिश्रित करता है। पोषक तत्वों से भरपूर यह स्वादिष्ट फल न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान देता है बल्कि उपज की बढ़ती मांग को भी पूरा करता है।

जैसे-जैसे भारतीय किसान तेजी से नवीन दृष्टिकोण अपना रहे हैं, पपीते की खेती एक आकर्षक अवसर के रूप में सामने आ रही है। देश की विविध जलवायु परिस्थितियों और उपजाऊ मिट्टी का लाभ उठाकर, किसान पपीते की खेती की पूरी क्षमता का उपयोग कर सकते हैं। भारत में पपीते की खेती का भविष्य जीवंत दिखाई देता है, जो स्वास्थ्य के प्रति लोगो की पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करते हुए किसानों को फलने-फूलने का एक सुनहरा अवसर भी प्रदान करता है।

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