Matar ki kheti | Pea cultivation | मटर की खेती की संपूर्ण जानकारी |

मटर की खेती कब और कैसे करना चाहिए। इस आर्टिकल के माध्यम से उन्नतशील किस्में कितनी दूरी पर हमको मटर (Pea) की बुवाई करनी चाहिए, सही समय, लगने वाली बीमारी, उनका उपाय और ज्यादा से ज्यादा पैदावार निकालने के लिए उर्वरक की संतुलित मात्रा कितनी डालनी है।

जब आप मटर की खेती करते हैं तो यदि आप Matar ki Kheti को ऑर्गनिक तरीके से करेंगे या फिर रासायनिक खादों का कम से कम प्रयोग करना पड़े तो कौन सी ऑर्गेनिक खादों का प्रयोग करना चाहिए। इस आर्टिकल्स में हम एक एकड़ में कितनी लागत लगती है ? लागत, मुनाफा, नेट प्रॉफिट के साथ साथ संपूर्ण जानकारी इस आर्टिकल्स में साझा करने वाले हैं और साथ ही जानेंगे खरपतवार नाशक मटर की फसल पर कौन सी खरपतवार नाशक का स्प्रे आपको करना चाहिए?

साथ ही मटर (Pea) की दानों का अच्छा भराव हो, तो इसके लिए कौनसी वैरायटी का चुनाव करें? दानों की चमक कैसे बढ़ाएं।बीजोपचार कैसे करना चाहिए? तमाम प्रकार के जो आपके सवाल हैं, समस्या हैं, इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से कवर करने वाले हैं।

उचित समय :-

सबसे पहले बात करते हैं टाइमिंग की। तो यदि आप मटर की खेती (Pea cultivation) कर रहे हैं तो मध्य अक्टूबर पर आपको बुवाई कर देनी चाहिए। अक्टूबर के आसपास का समय काफी बढ़िया माना जाता है।यह समय जर्मिनेशन के लिए काफी अनुकूल रहता है।

मटर (Pea) की बीज मात्रा :-

मटर की खेती (Pea cultivation) के लिए एक एकड़ में आपको 40 किलोग्राम से लेकर 60 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ने वाली है।

pea cultivation
pea cultivation

बीजोपचार :-

मटर की खेती अच्छे उत्पादन और मटर (Pea) फसल को रोग मुक्त रखने के लिए बीजोपचार आपको जरूर करना चाहिए। इसके लिए आप थायो मिथाइल और पायरा क्लोज टर्बन का कॉम्बिनेशन का दो एमएल दवा को एक किलोग्राम बीजों की दर से बीज उपचार करना चाहिए। बीजोपचार उपरांत 40 मिनट तक आपको छाया में सुखाना है।

मटर की बोवाई :-

बीजोपचार के बाद पलेवा करके आपको बुवाई कर देनी चाहिए। इसके अलावा कितनी दूरी पर हमको बुवाई करनी चाहिए तो लाइन से लाइन की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 4 से 5 सेंटीमीटर रखनी चाहिए।

Pea cultivation
Pea cultivation

3 से 4 सेंटीमीटर गहराई पर आपको सीडड्रिल विधि से आपको बुवाई करनी चाहिए। इससे आपको मटर की खेती से अच्छी उत्पादन मिलेगा। चाहे तो आप छिड़का बोवाई भी कर सकते है। लेकिन छिड़का बोवाई रखे की पौधा ज्यादा घना न हो ,इससे उत्पादन प्रभावित हो सकती है।

अगेती मटर की खेती :-

आप Matar ki Kheti दो तरीके से कर सकते हैं। एक तो अगेती मटर की खेती कर सकते हैं और समय में बुवाई कर सकते हैं। यदि आप अगेती मटर की बुवाई कर रहे हैं तो उन किस्मों का चुनाव करें जो कि 60 से 65 दिन में तैयार हो जाती हैं जैसे एपी-3, पीएसएम-3 जैसी मटर की किस्म को बुवाई कर सकते हैं।

यह वैरायटी 60 से 65 दिन में एकदम तैयार हो जाती हैं। और यदि आप अक्टूबर महीने पर इन किस्मों की बुवाई करते हैं, तो 60 से 65 दिन में अगेती कटाई के कारण मार्केट में जब आपका मटर जाएगा तो एक अच्छे बाजार भाव देखने के लिए मिलेंगे। इस समय आपको लगभग ₹40 से लेकर ₹60 प्रति किलोग्राम तक का रेट मिल सकता है। तो अगेती मटर की खेती करके भी आप काफी अच्छी कमाई कर सकते हैं।

matar ki kheti
matar ki kheti

मटर एक ऐसी फसल है जो कि कम समय पर, कम सिंचाई पर और कम उर्वरक पर आप अच्छा उत्पादन निकाल सकते हैं और कम से कम लागत की आवश्यकता इस फसल को पड़ती है। तो हमारे किसान भाई भी हरे मटर की खेती करके काफी अच्छी कमाई कर सकते हैं तो आप अगेती मटर की बुवाई कर सकते हैं।

बाकी समय में बुवाई कर रहे हैं तो मध्य अक्टूबर से लेकर नवंबर के पहले और दूसरे सप्ताह पर आप बुवाई कर सकते हैं।

उचित खाद का उपयोग :-

Matar ki Kheti में बेसल डोज देना जरुरी है ,क्योकि प्राइमरी न्यूट्रिएंट से मटर की बढ़वार अच्छी होगी। हमें बुवाई के समय कौन कौन सी खादों का प्रयोग करना चाहिए।

तो इसके लिए गोबर की खाद 3 से 4 ट्रॉली, एनपीके 12 :32: 16 को 50 किलोग्राम साथ कीटों की प्रारम्भिक रोकथाम के लिए रिजेंट जीआर,दानेदार कीटनाशक पांच किलोग्राम, सरसों की खली दो क्विंटल से लेकर पांच क्विंटल तक प्रति एकड़ उपयोग करना चाहिए।

चाहे तो इन सभी को मिक्स कर बुवाई के समय आपको प्रयोग करना चाहिए। जब आप मटर की खेती में डीएपी की जगह एनपीके 12:32:16 का प्रयोग करेंगे तो नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम तीनों पोषक तत्व की पूर्ति हो जाएगी। 1इसलिए एक एकड़ में एनपीके 50 किलोग्राम पर्याप्त है।

रिजेंट जीआर,दानेदार कीटनाशक

रिजेंट जीआर, एक दानेदार कीटनाशक है. यह फिप्रोनिल आधारित फ़िनाइल पाइरेज़ोल कीटनाशक है. यह मटर में तना छेदक और पत्ती मोड़क और दीमक और प्रारंभिक अंकुर छेदक कीटों को नियंत्रित करने के लिए बहुत सहायक है.

मटर (Pea) फसल की सिंचाई :-

मटर फसल में लगभग 2 से 3 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। वैसे तीन सिंचाई तो आप मान कर ही चलिए। वैसे पहले तो आपको पलेवा करना है फिर उसके बाद बुवाई करनी है। तब पहली सिंचाई लगभग लगभग आपको 8 से 10 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए।

यदि धूप अधिक पड़ रही हो तो फिर पलेवा करने के बाद 6 से 7 दिनों के अंतराल पर भी सिंचाई कर सकते हैं। तो यह सिंचाई मिट्टी के ऊपर निर्भर करती है। यदि हल्की भूमि है तो थोड़ा जल्दी जल्दी सिंचाई करनी पड़ सकती है।

Pea cultivation
Pea cultivation

वैसे मटर की फसल पर हल्की हल्की सिंचाई करनी पड़ती है तो मान के चलिए तीन-चार सिंचाई पर आसानी से फसल तैयार हो जाती है। यदि आप स्प्रिंकलर से आप सिंचाई कर सकते हैं। तो स्प्रिंकलर एरिगेशन सबसे बेस्ट माना जाता है।

खरपतवार की रोकथाम :-

वैसे मटर फसल (Pea Crop) पर निराई गुड़ाई सबसे बेस्ट ऑप्शन है। यदि हल्का फुल्का खरपतवार का जवाब है तो फिर मजदूरों की मदद से निराई गुड़ाई आपको करनी चाहिए। बाकी पोस्ट इमरजेंस खरपतवारनाशक का स्प्रे न करें। प्री इमरजेंसी खरपतवार नाशक का छिड़काव आप कर सकते हैं। यदि आप प्री इमरजेंस खरपतवार नाशक का छिड़काव करना चाहते है,तो-

प्री इमरजेंस खरपतवार नाशक-

(1) बोवाई के तुरत पहले मिटटी में फ़्लूक्लोरेलिन 45 ईसी दवा का 850 मिली प्रति एकड़ 300 से 400 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
(२) बोवाई के तुरंत बाद किन्तु अंकुरण के पूर्व (लगभग 1-2 दिन के अंदर) पेंडीमेथिलीन 30 ईसी 1000 से 1300 मिली दवा को 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

इससे खरपतवार का जमाव भी नहीं हो पाता है। वैसे भी फसल कम दिन की है और यदि हम खरपतवार नाशक का स्प्रे कर देंगे तो फसल को एक झटका लगेगा जिसके कारण हमारी फसल उतनी अच्छी बढ़वार नहीं ले पाएगी।

तो सीधी बात है कि आप पोस्ट इमरजेंस खरपतवार नाशक का स्प्रे न करें। वैसे प्री इमरजेंस खरपतवार नाशकका आप स्प्रे कर सकते हैं व साथ ही यदि आपको लग रहा है आपके खेत पर ज्यादा खरपतवार का जमाव होता है तो फिर मजदूरों की मदद से निराई गुड़ाई करें।

सूखने की समस्या:-

यदि मटर की फसल में सूखने की समस्या आती है तो आपको 200 लीटर पानी लेना है। 500 ग्राम ट्राइकोडर्मा लेना है और आपको 2 से 3 किलोग्राम गन्ने का गुड़ लेकर इनको ठीक तरीके से मिक्स करना है। फिर छह सात दिन के लिए रखना है और फिर सिंचाई के साथ यदि प्रयोग करेंगे तो सूखने की समस्या नहीं आएगी। ध्यान रखें ट्राइकोडर्मा में किसी भी केमिकल या फिर रासायनिक का आपको मिक्स करके प्रयोग नहीं करना है ।

मटर फसल पर कीट प्रबंधन:-

अब बात करते हैं मटर फसल पर कीट प्रबंधन की। फसल पर वैसे तो ज्यादा कीट-व्याधि की समस्याएं नहीं आती हैं, लेकिन फिर भी एक दो स्प्रे करने पड़ते हैं ताकि फली छेदक कीट प्रकोप को नियंत्रण किया जा सके। फली छेदक कीट मटर की फली मे छेद कर हानि पहुंचाते है।

इस कीट की नियंत्रण के लिए प्रोफेनोफॉस 50% ई.सी. 1.5 मि.ली.प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करे। अधिक प्रकोप की स्थिति में 1.5 मि.ली.प्रति लीटर के हिसाब से 200 लीटर पानी प्रति एकड़ की दर से दवा घोलकर छिड़काव करें।

मटर फसल (Pea Crop) पर स्टेम फ्लाई एवं लीफ माइनर तना एवं पत्ती का रस चूस लेते है। माहू की प्रकोप होने पर ये कीट मटर की पत्ती, फूल एवं फलियों से रस चूसते है। इनके प्रकोप से मटर फसल सूखने की समस्या और पीलापन की समस्या देखने को मिलती है।इसके नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोरो प्रिड 17.8 एस.एल.दवा का 0.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से हो घोलकर छिड़काव करे।

तो देखिए कभी कभी ऐसा रहता है कि खेत पर हमारी फसल पर ज्यादा प्रकोप देखने के लिए कीट पतंगों का नहीं मिलता है। लेकिन इन केस यदि प्रकोप बढ़ता है तो फिर ऐसी कंडीशन पर आप अपनी मटर की फसल पर दो स्प्रे को फॉलो कर सकते हैं।

मटर फसल पर रोग प्रबंधन:-

भभूतिया रोग (पावडरी मिल्डयू) मटर फसल (Pea Crop) पर फैलने वाली एक भयंकर रोग है, क्योकि इसके बीजाणु मिट्टी में और घास या जंगली पौधों पर पनपते है। बाद में उपयुक्त वातावरण मिलते ही रोग की उत्पत्ति होती है और मटर फसल में फ़ैलाने लगती है। अनुकूल वातावरण पाकर फसल पर भयंकर रूप में फ़ैल जाती है।

इस रोग के लक्षणा पौधों के सभी भागों पर दिखाई देती है। ये रोग प्रारम्भ में पत्तों या टहनियों पर छोटे छोटे चूर्णी धब्बे दिखाई देती है , जो बाद में बड़े आकार में मिल जाते है। जिससे पौधों की फलिया बहुत छोटी और सिकुड़ी हुई दिखाई देती है ,जिसके कारण फलियां पकने के पहले सुखकर गिर जाती है।

इस रोग नियंत्रण के लिए मटर फसल (Pea Crop) पर रोग के लक्षण दिखाई देते ही 0 1 प्रतिशत बेनलेट या बाविस्टिन या केराथन के घोल का छिड़काव करना चाहिए और 10-12 दिनों के अंतराल बाद पुनः छिड़काव करें। रोग नियंत्रण हेतु मोटे एवं स्वस्थ बीजों का प्रयोग करें। भविष्य में इस रोग से सुरक्षित रखने के लिए फसल की कटाई के बाद रोगग्रस्त पौधों व पत्तियों को इकट्ठा करके जला दें।

कटाई एवं गहाई:-

मटर फसल की कटाई का कार्य फसल की पकने के पश्चात् करें। जब मटर फली के बीज मे 15 प्रतिशत तक नमी बनी रहे उस स्थिति मे कटाई -गहाई का कार्य करना चाहिऐ।

मटर फसल की उपज और भण्डारण :-

मटर फसल की कटाई-गहाई करने के बाद मटर के बीज को अच्छे तरह से सूखा लें और जब उसमे नमी 8 से 10 प्रतिशत के बीच शेष रह जाये। तब बीज का भण्डारण सुरक्षित स्थान पर कर लें । वैसे सुरक्षित तरीका से मटर के बीज का भण्डार 1 से 2 वर्ष तक असानी से कर सकते है और बुवाई हेतु भी उपयोग कर सकते है।

यदि मटर की खेती उन्नत तकनीक से की जाए ,तो हमें मटर फसल से 8 से 9 क्विं. प्रति एकड़ तक उपज प्राप्त हो सकती है ।

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