दोस्तों जैसे की आप जानते हैं आलू सब्जियों का राजा कहलाता है। इसलिए अच्छी उत्पादन कर अधिक आमदनी कमाने के लिए आलू फसल में कीट नियंत्रण (pest control in potato crop)के उपाय नितांत आवश्यक है। इसकी फसल रबी सीजन में ली जाती है।
आज के इस ब्लॉग पोस्ट में हम आलू में लगने वाले विभिन्न प्रकार के कीटों के बारे में जानकारी देंगे तथा इनके प्रबंधन के बारे में भी जानकारी देंगे । किसान भाइयों आलू में विभिन्न प्रकार के कीट लगते हैं जैसे कि पोटैटो ट्यूबर मोथ, पोटैटो कटुवा, बीटल, एफिड और वाइट ग्रब। हम इन्हीं कीटों के बारे में विस्तार से जानेंगे तथा इनके प्रबंधन के बारे में भी हम जानेंगे।
(1) रस चूसक कीट:-
दोस्तों आज हम बात करेंगे आलू की फसल(potato crop) में लगने वाले रस चूसक कीटों के बारे में। सामान्यतया एफिड जोन एरिया में जब आलू की खेती की जाती है तो उसमें व्हाइटफ्लाई हरा मच्छर जैसे कि सीड एफिड या लीफ माइनर जैसे रस चूसक कीटों का अटैक बहुत ज्यादा होता है। जो यह एफिड है ।
एफिड जोन से मतलब होता है कि उस क्षेत्र से जहां पर नरमे की फसल के बाद आलू की फसल ली जाती है जैसे नॉर्थ भारत में। ऐसे एरिया जो एफिड जोन में आते हैं। इनमें अक्टूबर के पहले हफ्ते से लेकर नवंबर के पहले हफ्ते तक जिन खेतों में आलू की बिजाई हुई है उन खेतों में इन रसचूसक कीटों का अटैक सबसे ज्यादा देखा जाता है।
इन रसचूसक कीटों में से भी सबसे ज्यादा व्हाइटफ्लाई का अटैक है, जो ज्यादा पाया जाता है। व्हाइटफ्लाई आलू की फसल (potato crop) का रस चूसने के साथ साथ जो उसमें लीफ कर्लिंग वायरस होते हैं उसे भी एक पौधे से दूसरे पौधे तक पहुंचाने का काम करती है।
जिन क्षेत्रों में इन रस चूसक कीटों का अटैक ज्यादा होता है उसमें 20 से लेकर 40 परसेंट तक उत्पादन में कमी सामान्यतया देखी जाती है और सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि ऐसे खेतों के बीज हैं वह हम अगले साल बिजाई के लिए काम में नहीं ले सकते।
पत्तियों में लीफ कर्लिंग वायरस आ जाते हैं जिससे कि पत्ते इकट्ठे सिकुड़कर अंदर की ओर मुड़ जाते हैं। उनके किनारे वह पीले होने शुरू हो जाते हैं और पौधा पूरे खेत में से अलग अलग अपने को बीमार सा दिखाई देने लग जाता है।
रस चूसक कीट नियंत्रण:-
खेत में अच्छी उपज क्वालिटी बनाए रखने के लिए इन रसचूसक कीटों का कंट्रोल करना बहुत ही जरूरी होता है। वैसे तो इनके कंट्रोल के लिए बहुत से कीटनाशक बाजार में उपलब्ध हैं, लेकिन पौधे की नाजुक अवस्था को देखते हुए इस टाइम नीम ऑइल 300 पीपीएम का 500 एमएल प्रति एकड़ व थायो में 180 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से घोल तैयार करके इनकी स्प्रे करनी चाहिए।
इसके अतिरिक्त आप एम 39 यानी कि मैंकोजेब 75 परसेंट पाउडर के साथ मिलाकर भी इसका छिड़काव कर सकते हो। पहली स्प्रे के बाद 7 से 10 दिन के अंदर में इसी स्प्रे का दुबारा छिड़काव भी करें।
(2) आलू कंद पतंगा :-
आलू कंद पतंगा एक कीट है जो खेतों एवं गोदामों में आलू को नुकसान पहुंचाता है। मादा कीट पत्तों के निचले हिस्से पर तथा मृदा से निकले कदों पर लगभग डेढ़ 100 से 200 अंडे देती है। इस कीट की इल्ली धूसर और पीली सफेद होती है।खेतों में इल्ली पत्तों और तनों पर हमला करती है।
आलू फसल पर अधिक संक्रमण के दौरान यह कीट गोदाम में रखे कंद में सुरंग बना देती है।इस कीट के प्रबंधन के लिए एकीकृत कीट नियंत्रण अपनाना चाहिए।
आप आलू की फसल (potato crop) के साथ प्याज, मक्का, धनिया, लोबिया और उड़द जैसी फसल ले सकते हैं। इसके अलावा गैर मेजबान फसलों जैसे कद्दू, लौकी, गोभी आदि के साथ आप फसल चक्रीकरण कर सकते हैं।
कीट प्रबंधन :-
- आप आलू फसल (potato crop) साथ तुलसी जैसे विकर्षक पौधे लगा सकते हैं।बिजाई के लिए स्वस्थ कंद का इस्तेमाल कीजिए।
- हरी खाद, सही समय पर सिंचाई एवं उर्वरक का प्रयोग कीजिए।स्टोरेज और बीज प्लॉट जैसी तकनीकों को अपनाइए।
- हमेशा कंद को मृदा के नीचे ही रखिए और कंद की बिजाई 10 सेंटीमीटर की गहराई पर करें। 6 से 7 हफ्तों के बाद पौधों के आधार पर मिट्टी चढ़ाएं ताकि कंद मृदा में कम से कम 25 सेंटीमीटर की गहराई पर रहे।
- समय से सिंचाई करने से मृदा पर दरार नहीं आती है और कीट कंद पर अंडे नहीं दे पाते हैं। कीट के नियंत्रण के लिए खेतों एवं गोदामों में पैरा ट्रैप का इस्तेमाल कीजिए।
- नर कीट को पकड़ने के लिए चार ट्रैप प्रति क्यूबिक मीटर स्टोरेज की दर से इस्तेमाल करें। आप बैसिलस, तुरंग, जेनेसिस,बीटी और ग्रेन्युल से वायरस जीवी जैसे जैविक एजेंट का गोदाम में उपयोग कर सकते हैं।
- 3% संक्रमण होने पर रसायनों का छिड़काव करें। एक हेक्टेयर के लिए 1350 मिलीलीटर डेल्टा मेथेन, 2.8% ईसी या 450 मिलीलीटर साइफर मेथेन,25% ईसी को 750 लीटर पानी में मिलाइए और 30 दिन की फसल पर छिड़काव करें ।
- कटाई के बाद आलू के ढेर को एक ठंडी जगह में 10 से 15 दिन सूखने के लिए रखिए। उत्तम ढेर 3 से 4 मीटर लंबे और निचले भाग में चौड़े होते हैं और ऊपर एक मीटर चौड़े होते हैं। आलू के ढेर के नीचे एवं ऊपर सूखे हुए लैंटाना तथा सफेदे के पत्तों की 2 से 2.5 सेंटीमीटर मोटी तह बिछाई।
- पहाड़ों में कटे हुए आलू हवादार कमरों में सूखने के लिए फैलाएं । ताजे बाजार वाले आलू को 5 से 6 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर संग्रहित कीजिए।
- आलू को 7 से 10 डिग्री सेल्सियस तापमान के बीच तंदुरुस्त कंद को कीट से बचाव देने वाले गोदामों में संग्रहित कीजिए।
- किसान भाइयों, इन सामान्य फसल क्रियाएं और जैविक तकनीकों को अपनाकर आप संक्रमण से बच सकते हैं और अच्छी पैदावार हासिल कर सकते हैं।
(3) Thrips Pest in Potato Crop (थ्रिप्स कीट ):-
आलू की फसल (Potato Crop) में होने वाले थ्रिप्स कीट का प्रकोप, उसकी पहचान आप कैसे कर सकते हैं, उसका नियंत्रण कैसे कर सकते हैं इसके बारे में हम इस ब्लॉग पोस्ट पूरी जानकारी देंगे किसान भाइयों इसे आप आसानी से पहचान कर सकते हैं। इनके कारण पौधे की पत्तियां ऊपर की तरफ मुड़ी हुई दिखाई देंगी।
ये थ्रिप्स कीट जो रस चूसने वाले कीड़े होते हैं, बारीक होते हैं, उनके कारण से पत्तियां बहुत ज्यादा मुड़ी हुई दिखाई देती हैं। तो ये जो समस्या है किसान भाइयों ये रस चूसने वाले कीटों के कारण ही होती है। इस प्रकार आप थ्रिप्स की पहचान कर सकते है ।आलू की पत्तियां सुकड़ी हुई ऊपर की तरफ दिखाई दे देंगी।
नियंत्रण के उपाय :-
आलू की फसल (Potato Crop) में थ्रिप्स कीट नियंत्रण के लिए 25 % डब्ल्यूजी का 10 ग्राम 15 लीटर पानी के हिसाब से या फिर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 % sl 10 एमएल को 15 लीटर पानी के हिसाब से आप इन तीनों में से कोई एक ही दवाई का प्रयोग करें।
किसान भाईयों एक एकड़ की फसल में 100 से 200 लीटर पानी का प्रयोग करें। उसी हिसाब से आप दवाई की मात्रा का प्रयोग करें। दवाई स्प्रे करते समय किसान भाइयों सुबह जल्दी या शाम को लेट दवाई स्प्रे करें। ज्यादा धूप होने पर दवाई का स्प्रे न करें। उससे जो दवाई का असर है वह थोड़ा कम होता है।