किसान भाइयों, गर्मी के मौसम में हरे-भरे मक्के (Maize) के खेतों का नजारा देखकर आप खुश हो रहे होंगे। जब नवंबर दिसंबर का महीना होता है, तब खरीफ का फसल कट चुका होता है।फिर रबी का मौसम शुरू होता है और इस समय आम तौर पर किसान गेहूं की बुआई करते हैं या इसके साथ ही दूसरी फसल सरसों की बुआई करते हैं. लेकिन कुछ किसान गर्मियों में अतिरिक्त आय के लिए ग्रीष्मकालीन मक्के(Summer Maize) की खेती करते हैं।
अब हम आपको बताएंगे कि वे गर्मी में मक्का (Summer Maize) क्यों लगा रहे हैं और अन्य फसलों की तुलना में गर्मी में मक्का लगाने से उन्हें किस स्तर का फायदा मिल रहा है।हम आपको इसकी पूरी जानकारी बताएंगे.
Summer Maize Cultivation:-
जब ख़रीफ़ की फ़सल कट गई तो आपने अन्य फ़सलों की तुलना में मक्के की फ़सल (Maize Crop) को प्राथमिकता क्यों दी? यदि हम अन्य फसलें जैसे सब्जियाँ आदि लगाते हैं तो हमें प्रतिदिन बाज़ार जाना पड़ता है और उन्हें बेचकर हमें एकमुश्त पैसा नहीं मिल पाता है।
क्योंकि अगर हम मक्का (Maize) एकमुश्त बेचते हैं तो हमें पैसा एकमुश्त पैसा मिलता है। जिसके कारण हमें गर्मियों में सब्जियों के साथ-साथ मक्के की फसल का भी चयन करना चाहिए, तो आपको मक्के में अच्छे उत्पादन के साथ-साथ अच्छी आय भी प्राप्त होगी। यह मानव के साथ-साथ जानवरों का भी भोजन माना जाता है।
तो मक्के की खेती (Maize Cultivation) कब और कैसे करनी चाहिए, कितनी दूरी पर बोनी चाहिए, कैसे बोनी चाहिए और कौन सी किस्म सबसे ज्यादा पैदावार देगी और साथ ही एक एकड़ में कितने मक्के के बीज लगेंगे। मक्के की फसल में कुछ बीमारियाँ होती हैं जैसे फॉलवॉर्म और कैटरपिलर जो हमारी मक्के की फसल को बहुत नष्ट कर देता है।
तो हम मक्के की फसल (Maize Crops) को बीमारियों से कैसे बचा सकते हैं? अधिक उत्पादन पाने के लिए कौन से पोषक तत्वों की पूर्ति करनी चाहिए तो हम इस लेख के माध्यम से पूरी जानकारी जानने का प्रयास करेंगे। तो चलिए आगे पढ़ना शुरू करते हैं.
उपयुक्त समय :-
सबसे पहले अगर समय की बात करें तो मक्के की खेती (Maize Cultivation)आप रबी, खरीफ और जायद तीनों मौसम में कर सकते हैं. लेकिन मक्के की खेती सबसे ज्यादा खरीफ मौसम में की जाती है. आप ख़रीफ़ सीज़न के लिए जून से जुलाई के बीच, रबी सीज़न के लिए अक्टूबर से नवंबर के बीच और जायद सीज़न के लिए फरवरी से मार्च के बीच बुआई कर सकते हैं।
तापमान और जलवायु:-
मक्का (maize) एक अनाज की फसल होने के साथ-साथ गर्म एवं आर्द्र जलवायु की फसल है। जिसके कारण भारत में मक्के की खेती अधिकांश मैदानी इलाकों से लेकर 2700 मीटर की ऊंचाई तक के पहाड़ी इलाकों में सफलतापूर्वक उगाई जाती है। तापमान की बात करें तो मक्के की खेती के लिए 18 से 32 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है, इसके लिए इसे औसत तापमान माना जाता है.
उपयुक्त भूमि :-
मक्के की खेती (Maize Cultivation) के लिए भूमि और खेत की तैयारी की बात करें तो मक्के की खेती सभी प्रकार की भूमि पर की जा सकती है। चाहे काली मिट्टी हो, काली दोमट, चिकनी दोमट, बलुई दोमट, सभी प्रकार की मिट्टी काफी उपयुक्त होती है। हाँ, लेकिन उपयुक्त जीवाश्म वाली मृदा होनी चाहिए। इसके साथ ही अच्छे जल निकास की व्यवस्था होनी चाहिए तथा मिट्टी का पीएच मान पांच से साढ़े सात होना चाहिए।
उन्नतशील किस्म :-
मक्का फसल की उन्नतशील किस्मों के ऊपर बात करें, तो अच्छा उत्पादन देने वाली किस्मों को सभी राज्यों में सभी प्रकार की भूमि पर लगा सकते हैं। जिनमें से कुछ इस प्रकार है –
एनके 30 प्लस-
यह हाइब्रिड किस्म 80 से 90 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसके दाने का रंग गहरा नारंगी होता है। यह उष्णकटिबंधीय वर्षा और सूखा क्षेत्र के लिए उपयुक्त है।
एचएम – 11 (HM – 11):-
यह संकर मक्का (Hybrid Maize) की उन्नत किस्म है। यह कई रोगों के प्रति सहनशील है. यह अच्छी उपज देने वाली किस्म है. यह किस्म संक्रमण प्रतिरोधी होने के कारण किसानों को मक्का की खेती में अपेक्षाकृत लागत भी कम आती है. यह संकर मक्का उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ आदि क्षेत्रों में प्रसिद्ध है.
इसके अतिरिक्त सबसे अच्छा उत्पादन देने वाली मक्का की हाइब्रिड /उन्नत किस्मे जैसे पूसा विवेक क्यू पी एम 9 इम्प्रूव्ड (संकर), पूसा एच एम 4 इम्प्रूव्ड (संकर), पूसा एच एम 8 इम्प्रूव्ड (संकर), पूसा एच एम 9 इम्प्रूव्ड (संकर),पूसा जवाहर हाइब्रिड मक्का-1 (संकर),पूसा विवेक हाइब्रिड 27 इम्प्रूव्ड (संकर), पूसा एच क्यू पी एम 5 इम्प्रूव्ड, पायोनियर पी 3302, पायोनियर पी 3501, पायोनियर पी 3401 किस्मों की बोवाई करने से अधिक पैदावार होती है।
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उर्वरक उपयोग:-
तो दोस्तों ग्रीष्मकालीन मक्का लगाने के लिए प्रति एकड़ दो बैग डीएपी और तीन बैग यूरिया की आवश्यकता होती है। आप डीएपी की पूरी मात्रा मक्के की बुआई के समय दे सकते हैं और यूरिया को दो भागों में बांटकर भी दे सकते हैं, एक बोरी यूरिया 6 से 7 पत्तियां निकलने के बाद और दूसरी बालियां निकलने से पहले दें.
खरपतवार नियंत्रण:-
मक्के की फसल पर खरपतवारों का गहरा प्रभाव पड़ता है। कभी-कभी अधिक खरपतवार के कारण मक्के की फसल 20 से 50% तक उत्पादन कम हो सकती है। यदि ग्रीष्मकालीन मक्के की फसल पर कुछ इस प्रकार के खरपतवार दिखाई दें। जैसे हुलहुल, नुपिया, मकरा, चौलाई, भाखड़ी, सांथी, बिस्कोपरा, जंगली जूट, दूधी आदि तब फिर निम्नलिखित शाकनाशी का उपयोग किया जा सकता है।
मक्के की फसल पर चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए एट्राजिन 50% WP शाकनाशी का 500 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव कर सकते हैं और इसका उपयोग करने का सही समय यह है कि आप इसे दो बार कर सकते हैं। पहली बार छिड़काव बुआई के 48 घंटे के अंदर करना होता है और दूसरी बार बुआई के 20 दिन बाद करना होता है और छिड़काव करते समय ध्यान रखें कि छिड़काव के लिए कट नोजल का ही प्रयोग करना चाहिए। जो अधिक प्रभावशाली होता है.
इसके अलावा लौडिस (टेम्बोट्रियन 34.4 ww या 42 %sc) का 115 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें. यह शाकनाशी मक्के की फसल में सभी प्रकार के खरपतवारों को नियंत्रित करता है।
तो अंत में किसान भाइयों, यदि आप अच्छी वैरायटी का चयन जो क्षेत्र के लिए उपयुक्त हो का चयन करें। जिसे आप किसी भी प्रकार की मिट्टी में लगा सकते हैं। और संभव हो गर्मी के प्रित सहनशील होती है। वैसे मक्का की पैदावार सभी क्षेत्रों में लगभग समान आती है। यदि किसान भाइयों हम किस्म चुनने में अच्छी लागत देते हैं, अच्छे से देखभाल करते हैं, समय से इसका ट्रीटमेंट करते हैं तो यह हमें बहुत ही बंपर पैदावार देकर जाती है।
किसान भाईयो इस आर्टिकल में दी गयी जानकारी आपके ज्ञान के लिए और सूचनात्मक है। यदि आप खरीफ या गर्मी में मक्के खेती करते है तो आप अपने नजदीकी कृषि विभाग के क्षेत्रीय अधिकारी या कृषि विज्ञान केंद्र के वज्ञानिकों से सलाह जरूर ले लें। धन्यवाद् दोस्तों !!