Urad ki Unnat Kheti | उड़द की खेती.

किसान भाइयों , urad ki unnat kheti जानने से पहले हमें उड़द दाल के गुण के बारे जानना भी जरुरी है। वैसे आप सभी उड़द दाल से परिचित है क्योकि उड़द की बड़ा चटनी के और इडली खाना कौन पसंद नहीं करता है। उड़द, जिसे आमतौर हम पर काले चने के नाम से जानते है, भारत  के विभिन्न हिस्सों में खेती और खपत की जाने वाली एक महत्वपूर्ण दलहन फसल है।

urad ki unnat kheti
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उड़द दाल में अनेकों प्रकार के पोषक तत्व पाई जाती है जैसे  प्रोटीन, आहार फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन बी काम्प्लेक्स और कैल्शियम जैसे आवश्यक पोषक तत्वों की प्रचुर मात्रा पाई जाती है, जो इसे करोङो लोगों के लिए पोषण तत्व का एक प्रमुख स्रोत बनाता है। इस लेख में, हम उड़द की विपुल उत्पादन तकनीक का पता लगाएंगे और इसकी खेती और उत्पादकता बढ़ाने के लिए सर्वोत्तम तकनीक पर चर्चा करेंगे ।

Table of Contents

उड़द का महत्त्व :-

उड़द दाल हमें पोषक तत्व प्रदान  करने के साथ मानसिक विकार पेट सम्बंधित समस्या तथा गठियावात जैसी बीमारियो को दूर करने की क्षमता होती है। वैसे भारत में urad ki kheti प्राचीनकाल से होती आ रही है। हमारे धर्म ग्रंथो मे ऋषि -मुनियों ने ईसका कई स्थानो पर विस्तार से वर्णन किये है। प्राचीन समय में उड़द का उल्लेख कौटिल्य के “अर्थशास्त्र तथा चरक सहिंता” मे भी पाया गया है। इसे एक प्रकार औषधिगुणों से भरपूर फसल के रूप में भी जाना जाता है।

इसके साथ ही वैज्ञानिक डी कॅडोल (1884) तथा वेवीलोन (1926) के अनुसार उड़द का उद्गम तथा विकास भारतीय उपमहाद्वीप मे ही हुआ है। भारत की एक प्राचीन दलहनी फसल है ,जिसे खरीफ ,रबी व ग्रीष्मकालीन फसल के रूप में उगाया जाता है। वैसे उड़द का उपयोग प्रमुख रूप से दाल के रूप मे किया जाता है। यह कम अवधी में पककर तैयार हो जाती है।  

उड़द दाल की उपयोगिता :-

urad ki unnat kheti की प्रक्रिया को समझने से पहले हम उड़द दाल की उपयोगिता को भी समझ लेते है। उड़द में पोषक तत्व की भरपूर मात्रा होने के कारण इसका स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाया जाता है ,जो खाने में स्वाद के साथ साथ हमारे शरीर को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करता है। जिसका उपयोग कर हम स्वस्थ और हैल्थी रह सके है।

उड़द की दाल से किचन में बनने वाली व्यंजनों में से कचैड़ी, पापड़, बड़ी, बडे़, हलवा,इमरती,पूरी,इडली,डोसा आदि  तैयार किये जाते है। इसके साथ उड़द की फसल अवशेष जैसे दाल की भूसी पशु आहार के रूप मे भी उपयोग की जाती है। उड़द फसल  के हरे एवं सूखे पौधो पशुओं के लिए एक उत्तम आहार माना जाता है।  

इसके अतिरिक्त उड़द एक दलहन फसल होने के कारण वायुमण्डल की नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करके भूमि की उर्वरा शक्ति मे वृद्धि करता है। उड़द फसल से खेत मे पत्तियों के सड़ने से एवं जड़ के रह जाने के कारण भूमि मे कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है। उड़द फसल  को खेत में  अन्य फसल के लिए हरी खाद के रूप मे उपयोग किया जा सकता है। जो खेत बोये जाने वाले आगामी फसल को आवश्यक पोषक प्रदान करता है।

उड़द से स्वास्थ लाभ :-

हमारे शरीर के लिए प्रोटीन महत्त्वपूर्ण पोषक तत्व है ,इसलिए भोजन का मुख्य अंग प्रोटीन होता है जो कि हमें सामान्यतः  माँस,मछली,अण्डा एवं दूध से प्राप्त होता है। वैसे भारत की जनसंख्या का अधिकांश हिस्सा शाकाहारी होने के कारण प्रोटीन जैसे पोषक तत्वों की पूर्ति दालो से ही होती है।

जबकि सभी दालो मे से उड़द की दाल मे सबसे अधिक प्रोटीन होता है। इसलिए urad ki daal का भोजन में महत्वपूर्ण स्थान है। इसमें प्रोटीन के अतिरिक्त  कई प्रकार के महत्वपूर्ण विटामिन एवं खनिज लवण भी पाये जाते है जो स्वास्थ्य के लिये लाभप्रद होते है। इसलिए भारत में urad dal farming पर ज्यादा महत्त्व दिया जाता है। हम यंहा उड़द की संभावित पोषक मूल्य सारणी के रूप में दिखाए है :-

urad ki unnat taknik
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वैसे भारत विश्व स्तर पर उड़द के उत्पादन मे सबसे अग्रणी देश है। उड़द के उत्पादन भारत के अतिरिक्त म्यानमार, ईरान, पाकिस्तान, जापान, कनाडा, थाइलैण्ड, बांग्लादेश, सिंगापुर, ग्रीस एवं पूर्वी अफ्रीका जैसे देशों में किया जाता है। भारत के कई राज्यों में urad ki unnat kheti का उपयोग कर मैदानी क्षेत्रो मे इसकी खेती मुख्यरूप से खरीफ मौसम मे किया जाता है। लेकिन भारत में विगत दो दशको से उड़द की खेती रबी के साथ साथ ग्रीष्म ऋतु मे भी अधिक लोकप्रिय हो रही है। 

जहाँ तक आकंड़ों की बात करें तो हमारे देश मे उड़द की खेती 3245 हजार हेक्टेयर मे हो रही है। इसकी वार्षिक उत्पादन 1400 हजार मैट्रिक टन है। देश के कुल दलहन क्षेत्रफल एवं उत्पादन मे क्रमशः लगभग 16.38 प्रतिशत एवं 11.49 प्रतिशत उड़द का योगदान है।

देश मे उड़द की औसत उपज 451.6 किग्रा./हेक्टेयर है। जिसमे देश के महाराष्ट्र राज्य में 18.55 प्रतिशत, आंध्रप्रदेश में 16.23 प्रतिशत, मध्यप्रदेश में 18.55 प्रतिशत, उत्तरप्रदेश 12.61 प्रतिशत और  तमिलनाडू में 11.00 प्रतिशत प्रमुख उड़द उत्पादक प्रदेश है।  जबकि देश के कुल उड़द उत्पादन का 70 प्रतिशत केवल महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश एवं तमिलनाडू से प्राप्त होता है।स्त्रोत – एग्रोइंडिया वेवसाइट

वैसे यदि छत्तीसगढ़ राज्य में उड़द की उत्पादन की बात की जाये तो खरीफ सीजन 2022-23 में एक लाख बाइस हजार हेक्टेयर में उड़द की खेती की गई थी .जिससे राज्य में उड़द का अनुमानित उत्पादन 48,800 टन है.

Urad ki Unnat Kheti:-

उड़द की उन्नत खेती से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए विभिन्न कारको को ध्यान में रखकर खेती से किसान भाइयों अच्छी आमदनी प्राप्त हो सकती है। तो आईये Urad ki unnat Taknik से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए जलवायु, खेत की तैयारी ,संतुलित उर्वरक उपयोग जैसे विभिन्न कारको पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करते है –

जलवायु:-

वैसे उड़द की खेती (urad ki kheti) से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए जलवायु में  नम एवं गर्म मौसम की आवश्यकता होती है। क्योकि उड़द की फसल की अधिकतर प्रजातियां  सूरज की रौशनी के लिये संवेदी होती है। उड़द फसल की उपयुक्त वृद्धि के लिये 25-30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान की आवश्यकता होता है। जबकि 700 से 900 मिमी वर्षा वाले क्षेत्रो मे भी उड़द फसल को सफलता पूर्वक उगाया जा सकता है। लेकिन फूल आने की अवस्था पर अधिक वर्षा होना फसल के लिए हानिकारक है। वैसे ही फसल पकने की अवस्था पर वर्षा होने पर दाना खराब हो जाता है। जिससे फसल उत्पादन प्रभावित होती है। 

भूमि का चयन एवं तैयारी :-

Urad ki Unnat Kheti के लिए सबसे पहला कदम सही मिट्टी का चयन करना है। उड़द के लिए अच्छी जल निकास वाली दोमट मिट्टी, हल्की रेतीली या मध्यम प्रकार की भूमि अधिक उपयुक्त होती है। पौधों के स्वस्थ विकास के लिए पर्याप्त मिट्टी की तैयारी और पोषक तत्वों का संवर्धन आवश्यक है।

वैसे उड़द की खेती विभिन्न प्रकार की भूमि में भी की जा सकती है।  लेकिन पी.एच. मान 7 से 8 के बीच वाली भूमि Urad ki Kheti के लिये सबसे अच्छी होती है। इसके लिए अम्लीय व क्षारीय भूमि उपयुक्त नही है। वर्षा आरम्भ होने के बाद दो- तीन बार हल या बखर चलाकर खेत को समतल कर लें । वर्षा आरम्भ होने के पहले बोनी करने से पौधो की बढ़वार भी अच्छी होती है।

उड़द की उन्नत किस्में (Improved Varieties of Urad)-

urad ki unnat kheti
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बीज मात्रा एवं बीजउपचार :- 

उड़द फसल में अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए बीज मात्रा भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है इसलिए उड़द बीज की अनुशंसित मात्रा का उपयोग करें। अतः उड़द का बीज 15 से 20 किलोग्राम  प्रति हेक्टेयर की दर से बोवाई करना चाहिये। 

खेत में उड़द बीज बुबाई के पूर्व बीज को 3 ग्राम थायरम या 2.5 ग्राम डायथेन एम-45 से प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करे। इसके साथ ही जैविक बीजोपचार के लिये ट्राइकोडर्मा फफूँद नाशक को 5 से 6 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपयोग कर उपचारित करें।

बीज बोनी का समय एवं तरीका :- 

उड़द की बोनी के लिए सही समय मानसून के आगमन पर या जून के अंतिम सप्ताह मे पर्याप्त वर्षा होने पर बुबाई करना चाहिए। अच्छी उपज के लिए बोनी तिफन या नारी हल से बोवाई करे। उड़द बीज कतारों में बोवाई के लिए कतारों की दूरी 30 सेमी. तथा पौधो से पौधो की दूरी 10 सेमी. की दुरी पर तथा बीज 4 से 6 सेमी. की गहराई पर बोवाई करें।

खाद एवं उर्वरक की मात्रा :- 

उड़द फसल में अनुशंसित मात्रा का उपयोग करने से अच्छी उपज प्राप्त किया जा सकता था। उड़द की खेती के लिए नत्रजन 20 से 30 किलोग्राम , स्फुर 50 से 60  किलोग्राम और पोटाश 25  किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उपयोग करें। खाद की पूरी  मात्रा बुबाई की समय डाले। यदि कतारो मे बीज की बोवाई कर रहे है ,तो कतारों के ठीक नीचे डालना चाहिये। 

दलहनी फसलो मे गंधक की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है ,इसलिए दलहनी फसलों में गंधक युक्त उर्वरक जैसे सिंगल सुपर फास्फेट, अमोनियम सल्फेट एवं जिप्सम आदि का उपयोग करना चाहिये। खासकर गंधक की कमी वाले क्षेत्रों मे 20 किलोग्राम  प्रति हेक्टेयर गंधक युक्त उर्वरको का उपयोग करना चाहिए। 

सिंचाई के तरीके:-

वैसे खरीफ मौसम में उड़द की खेती में बहुत अधिक सिंचाई आवश्यकता नहीं होती है।खरीफ में उड़द फसल को तब पानी की आवश्यकता होती है, जब फसल में फूल आने और फली बनने अवस्था हो । चूँकि वर्षा के अभाव में फलियों के बनते समय सिंचाई करने की आवश्यकता होती है।

जबकि रबी और ग्रीष्म फसल को 3 से 4 बार सिंचाई की जरूरत पड़ती है। आवश्यकता अनुसार सिंचाई 20 दिन के अंतराल पर होनी चाहिए। इसके लिए उचित सिंचाई तकनीक, जैसे ड्रिप सिंचाई या स्प्रिंकलर सिस्टम पानी की बर्बादी को रोक सकते हैं और पानी के उपयोग की दक्षता में सुधार कर सकते हैं।

खरपतवार प्रबंधन:-

विशेषकर, खरपतवार प्रबंधन उड़द की उन्नत खेती(Urad ki Unnat Kheti) का एक महत्वपूर्ण पहलू है क्योंकि खरपतवार फसल की उपज और गुणवत्ता को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकते हैं। खरीफ मौसम में खरपतवार आवश्यक पोषक तत्वों, पानी और सूरज की रोशनी के लिए उड़द के पौधों के प्रभावित कर सकते हैं और ये फसल की वृद्धि और विकास में बाधा डाल सकते हैं। इसलिए, खरीफ में उड़द की खेती अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए प्रभावी खरपतवार प्रबंधन आवश्यक है।

हाथ से निराई करना:-

Urad ki Unnat Kheti से अधिक उत्पादन के लिए हाथ से निराई कर खेत से खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है। वैसे श्रम-गहन एक लागत प्रभावी तरीका है, लेकिन यह पर्यावरण के अनुकूल तरीका है, विशेषकर छोटे किसानों के लिए। फसल की प्रारम्भ में खरपतवार की वृद्धि को रोकने के लिए हाथ से निराई करना सबसे अच्छा होता है ताकि पौधे तेजी से वृद्धि कर सके।

शाकनाशी :-

हाथ से निराई कर खरपतवार नियंत्रण उन किसानों के लिए मुश्किल हो जाता है , जो बड़े पैमाने पर उड़द की खेती करते है। इसलिए खरपतवारों को कुशलतापूर्वक नियंत्रित करने के लिए शाकनाशी का उपयोग किया जा सकता है। आज वर्तमान में उड़द फसल के लिए चुनिंदा शाकनाशी उपलब्ध हैं, जो उड़द के पौधों को नुकसान पहुंचाए बिना आसानी से खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता हैं। उड़द फसल के लिए शाकनाशी की अनुशंसित खुराक और दिशा निर्देश का उपयोग कर प्रभावी उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

खरपतवार उड़द फसलो को अपेक्षाकृत अधिक क्षति पहुँचाते है। अतः उड़द की विपुल उत्पादन के लिये नींदानाशक वासालिन 800 मिली. से 1000 मिली. प्रति एकड़ 250 लीटर पानी मे घोल बनाकर जमीन बखरने के पूर्व नमी युक्त खेत मे छिड़क सकते है।

फसल चक्र :-

फसल चक्र एक प्राचीन पद्धति है जो प्राकृतिक रूप से खरपतवार प्रबंधन में मदद कर सकती है। उड़द फसल को अन्य फसलों के साथ वैकल्पिक रूप उपयोग कर , विशिष्ट खरपतवारों की संख्या को कम किया जा सकता है।

अंतर – फसल :-

उड़द को अन्य अनुकूल फसलों के साथ सहफसलित करने से खरपतवारों के लिए अधिक प्रतिस्पर्धी वातावरण बन सकता है। लेकिन साथी फसलों की वृद्धि से खरपतवार की वृद्धि को रोका जा सकता है और खरपतवार नियंत्रण की आवश्यकता कम हो सकती है।

एकीकृत खरपतवार प्रबंधन (IWM):-

एकीकृत खरपतवार प्रबंधन में प्रभावी और टिकाऊ खरपतवार प्रबंधन प्राप्त करने के लिए कई खरपतवार नियंत्रण विधियों का संयोजन शामिल है। सांस्कृतिक, यांत्रिक और रासायनिक प्रथाओं के संयोजन को अपनाकर, किसान खरपतवार के दबाव को कम कर सकते हैं और समग्र फसल स्वास्थ्य में सुधार कर सकते हैं।

रोग एवं कीट नियंत्रण :-

उड़द की उन्नत खेती से अच्छा उत्पादन के लिए रोग एवं कीट नियंत्रण सुनिश्चित करना आवश्यक है। उड़द फसल के विभिन्न चरणों में रोग और कीट फसल पर हमला कर सकते हैं, जिससे उपज में कमी साथ-साथ गुणवत्ता में भी कमी आती है। इसलिए प्रकोपित रोग और कीट का समुचित नियंत्रण कर स्वस्थ और उत्पादक मिल सकती है। तो आईये हम जानते है उड़द फसल कुछ प्रमुख रोग और नियंत्रण :-

(1) पत्ती धब्बा रोग:

पत्ती धब्बा रोग, उड़द के पौधों पर फफूंद के कारण होने वाले एक आम रोग हैं। इसके कारण पत्तियों पर छोटे, काले धब्बे के लक्षणों दिखाई देते हैं जो बाद में छोटे-छोटे धब्बे आपस में मिलकर पुरे पत्तियों में फ़ैल जाती है और पत्तियां झड़ने लगती हैं। पत्ती धब्बा रोगों को नियंत्रित करने के लिए किसानों को निम्नलिखित उपायों पर विचार करना चाहिए:-

बीज उपचार: बुआई से पहले उड़द के बीजों को फफूंदनाशकों से उपचारित करने से युवा पौध को फफूंद संक्रमण से बचाने में मदद मिल सकती है।

(2) पाउडरी मिल्ड्यू :-

पाउडरी मिल्ड्यू उड़द उत्पादन को अपेक्षाकृत अधिक प्रभावित करने वाला कवक रोग है जो उड़द के पौधों को प्रभावित करता है। यह पत्तियों, तनों और फलियों पर सफेद पाउडर जैसी वृद्धि के रूप में दिखाई देता है।

प्रतिरोधी किस्में:- पाउडरी मिल्ड्यू रोग का उचित प्रबंधन के लिए पौधों की प्रतिरोधी किस्में चयन करें।

उचित दूरी:– पौधों के बीच पर्याप्त दूरी सुनिश्चित करने से बेहतर वायु संचार होता है, जो नमी के स्तर को कम करने और बीमारी के प्रसार को सीमित करने में मदद कर सकता है।

कवकनाशी उपचार:– पाउडरी मिल्ड्यू प्रकोप अधिक होने पर नियंत्रित करने के लिए कवकनाशी स्प्रे का उपयोग किया जा सकता है।

उड़द फसल को प्रभावित करने वाले सामान्य कीट:-

(1) फली छेदक:

फली छेदक एक महत्वपूर्ण कीट है जो उड़द की फलियों को नुकसान पहुंचाता है, जिससे उपज में कमी आती है। फली छेदक को नियंत्रित करने के लिए अपनाये –

फेरोमोन जाल: फेरोमोन जाल का उपयोग वयस्क कीट गतिविधि की निगरानी करने के साथ-साथ कीट वृद्धि को नियंत्रण करता है।

कीटनाशक अनुप्रयोग: यदि संक्रमण आर्थिक हानि स्तर से अधिक पहुँच जाता है, तो लक्षित कीटनाशक का प्रयोग कर फली छेदक को नियंत्रित कर सकता है।

(2) सफेद मक्खी:

सफ़ेद मक्खियाँ एक छोटे रस चूसने वाले कीड़े हैं जो उड़द के पौधों में वायरल रोग फैलाते हैं। सफ़ेद मक्खियों के प्रबंधन के लिए निम्न उपाय कर सकते है :

पीला चिपचिपा जाल: खेत में पीला चिपचिपा जाल लगाने से वयस्क सफेद मक्खियों की नियंत्रण किया जा सकती है।

नीम तेल :- सफेद मक्खी की संख्या को नियंत्रित करने के लिए नीम आधारित कीटनाशकों का उपयोग किया जा सकता है।

अंतरफसल: कुछ सहवर्ती फसलें, जैसे गेंदा या तुलसी, सफेद मक्खियों को रोक सकती हैं और खेत में उनकी संख्या कम कर सकती हैं।

एकीकृत कीट प्रबंधन (आईपीएम):-

एकीकृत कीट प्रबंधन को अपनाना रसायनों पर निर्भरता को कम करते हुए कीट और बीमारी के नुकसान को कम किया जा सकता है। आईपीएम में निम्न क्रियाएं शामिल हैं:

नियमित निगरानी: बार-बार क्षेत्र निरीक्षण से कीट और बीमारी का शीघ्र पता लगाया जा सकता है।

सीमाएँ और कार्रवाई बिंदु: यह निर्धारित करने के लिए कि कब नियंत्रण उपाय आवश्यक हैं, विशिष्ट कीट और रोग जनसंख्या सीमाएँ निर्धारित करें।

शस्य क्रियाएँ : अंतरफसल, फसल चक्र और खेत की स्वच्छता बनाए रखने जैसी क्रियाओं को स्वाभाविक रूप से कीटों और बीमारियों का प्रबंधन कर सकती हैं।

जैविक नियंत्रण: कीटों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए प्राकृतिक शिकारियों और लाभकारी कीड़ों की उपस्थिति को प्रोत्साहित करें।

रासायनिक नियंत्रण: अधिक प्रकोप की स्थिति पर लाभकारी कीड़ों और पर्यावरण पर प्रभाव को ध्यान में रखते हुए कीटनाशकों का अनुशंसित मात्रा का उपयोग किया जाना चाहिए।

कटाई और गहाई :-

उड़द की अच्छी गुणवत्ता और उपज सुनिश्चित करने के लिए कटाई उचित अवस्था में की जानी चाहिए। देर से कटाई करने से फलियाँ टूट सकती हैं और बीज नष्ट हो सकते हैं।जिससे उपज प्रभावित हो सकती है।

सुखाना और गहाई करना :-
उड़द फसल की कटाई के बाद नमी की मात्रा कम करने के लिए सुखाना आवश्यक है। साथ ही बीज को नुकसान से बचाने के लिए गहाई सावधानीपूर्वक करनी चाहिए।

भंडारण :-

उड़द को अच्छी तरह से सुखाकर साफ और सूखे कंटेनरों में संग्रहित किया जाना चाहिए। उचित भंडारण से फसल को कीटों के संक्रमण और फंगल बचाव किया जा सकता है।

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FAQs:-

प्रश्न: क्या उड़द अन्य फसलों के साथ अंतरवर्ती खेती के लिए उपयुक्त है?

उत्तर: हां, भूमि उपयोग और उत्पादकता को बढ़ाने के लिए उड़द को सोयाबीन, मक्का या अरहर जैसी फसलों के साथ सहफसलित किया जा सकता है।

प्रश्न: ऐसा सामान्य कीट कौन से हैं जो उड़द फसल को प्रभावित करते हैं?

उत्तर: उड़द फसल के लिए हानिकारक कीटों में फली छेदक, सफेद मक्खी और एफिड शामिल हैं। नियमित निरिक्षण से इन कीटों को पता लगाकर आसानी से नियंत्रण करने में मदद मिल सकती है।

प्रश्न: क्या उड़द को ठंडी जलवायु वाले गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में उगाया जा सकता है?

उत्तर : उड़द गर्म मौसम की फसल है और उष्णकटिबंधीय या उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में सबसे अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। ठंडे क्षेत्र इसके विकास के लिए अनुकूल स्थितियाँ प्रदान नहीं कर सकते हैं।

प्रश्न: क्या उड़द की खेती छोटे किसानों के लिए उपयुक्त है?

उत्तर: हां, उड़द की खेती को छोटे पैमाने में खेती करने वाले किसानों के लिए उपयुक्त है। उड़द कम अवधि की फसल होने कारण अन्य फसलों के साथ फसल चक्र के लिए उपयुक्त बनाती है।

प्रश्न: मैं अपनी उड़द उपज का मूल्य कैसे बढ़ा सकता हूँ?

उत्तर: उड़द को दाल या आटे में संसाधित करने जैसे विभिन्न तरीकों से मूल्यवर्धन प्राप्त किया जा सकता है, जिससे बाजार में अधिक कीमतें मिल सकती हैं।

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