भारत में तरबूज की खेती (Watermelon Farming) अपने पोषण मूल्य, आर्थिक लाभ कारण महत्वपूर्ण महत्व रखती है। अपनी रसदार मिठास और ताज़ा स्वाद के लिए जाना जाने वाला तरबूज़ पूरे देश में खाया जाने वाला एक लोकप्रिय फल है। तरबूज की खेती के लिए अनुकूल जलवायु और मिट्टी की स्थितियों अच्छी खासी आमदनी कमा सकते है।
- भारत में तरबूज की खेती का महत्व:-
- तरबूज की खेती (Watermelon Farming) :-
- तरबूज की खेती का समय :-
- उपयुक्त भूमि :-
- भूमि तैयार करना:-
- बेड की तैयारी :-
- खाद का प्रयोग :-
- तरबूज की उन्नत किस्म :-
- बीज और पौध मात्रा :-
- नर्सरी तैयार और पौध रोपण :-
- ड्रेंचिंग शेड्यूल :-
- कीट-व्याधि नियंत्रण :-
- फसल तुड़ाई और भंडारण:-
भारत में तरबूज की खेती का महत्व:-
तरबूज की खेती भारत के कृषि में विशेषकर गर्मी के महीनों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो कई लोगों की आजीविका में महत्वपूर्ण योगदान देती है। घरेलू बाजारों में इसकी उच्च मांग और निर्यात के कारण तरबूज की खेती रोजगार के अवसर प्रदान करती है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां कृषि आय का प्राथमिक स्रोत है। तरबूज़ की खेती न केवल किसानों की आजीविका को बनाए रखती है बल्कि प्रसंस्करण, पैकेजिंग और परिवहन में शामिल विभिन्न सहायक उद्योगों को भी समर्थन देती है।
वैसे तरबूज भारत भर में लाखों लोगों के लिए पोषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में कार्य करता है। आवश्यक विटामिन, खनिज और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर तरबूज कई स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है। इसके हाइड्रेटिंग गुण इसे चिलचिलाती गर्मी के महीनों के दौरान विशेष रूप से मूल्यवान बनाते हैं, जिससे निर्जलीकरण और गर्मी से संबंधित बीमारियों से निपटने में मदद मिलती है।
इसके अलावा, तरबूज का सेवन बेहतर हृदय स्वास्थ्य, प्रतिरक्षा से जुड़ा हुआ है।इसके हर टुकड़े में स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाले विटामिन सी और बीटा-कैरोटीन और लाइकोपीन सहित एंटीऑक्सीडेंट मौजूद होते हैं।
तरबूज की खेती (Watermelon Farming) :-
वैसे अगेती तरबूज की खेती करके आप काफी अच्छी कमाई कर सकते हैं. तो दोस्तों कैसे आपको तरबूज की खेती करना चाहिए। इस आर्टिकल के माध्यम से डिटेल में सम्पूर्ण जानकारी साझा करेंगे। चाहे वेस्ट वैरायटी हो या फिर बुवाई के समय खाद या फिर खाद का शेड्यूल, लागत लाभ नेट प्रॉफिट के साथ साथ संपूर्ण जानकारी साझा करने वाले हैं।
तरबूज की खेती का समय :-
दोस्तो, अगेती तरबूज की खेती (Watermelon Farming) आप दिसंबर-जनवरी महीने पर कर सकते हैं। वैसे तरबूज गर्मियों की फसल है। खासकर गेहूं कटाई के बाद जनवरी, फरवरी, मार्च महीने और अप्रैल महीने पर काफी ज्यादा खेती की जाती है। चूँकि तरबूज की खेती गर्मियों पर की जाती है लेकिन कहीं ना कहीं आप अगेती तरबूज की खेती करेंगे तो काफी अच्छे से आप कमाई कर पाएंगे।
उपयुक्त भूमि :-
तरबूज की खेती (Watermelon Farming) सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है । बैसे तो आप दोमट भूमि, रेतीली, बलुई दोमट भूमि पर काफी ज्यादा खूब तरबूज की खेती की जाती है तो सभी प्रकार की भूमि पर आप खेती कर सकते हैं। बस उत्तम जल निकास का प्रबंध होना बहुत ज्यादा जरूरी है। खेत की तैयारी रोटावेटर और कल्टीवेटर से आपको खेत की तैयारी कराना चाहिए और मल्चिंग पेपर आपको जरूर बिछाना है।
भूमि तैयार करना:-
रोपण प्रक्रिया शुरू करने से पहले, तरबूज की खेती के लिए अनुकूल वातावरण बनाने के लिए भूमि को पर्याप्त रूप से तैयार करना आवश्यक है। भूमि की अच्छी तैयारी करने से स्वस्थ पौधों के विकास होता हैं।
भूमि की जुताई, मिट्टी को तोड़ने और जड़ों के प्रवेश को सुविधाजनक बनाने के लिए इसे ढीला करने में मदद करता है। जुताई से फसल के अवशेषों और खरपतवारों को नष्ट करने में भी मदद मिलती है, जिससे पोषक तत्वों की प्रतिस्पर्धा कम हो जाती है।
जुताई के बाद, भूमि को समतल करना आवश्यक है, क्योकि सिंचाई के दौरान जल का प्रवाह में सहायता करता है और पानी के ठहराव को रोकता है। असमान भूभाग से जलभराव हो सकता है, जो तरबूज के पौधों के लिए हानिकारक हो सकता है, जिससे उचित जल निकासी सुनिश्चित करने के लिए समतल करना महत्वपूर्ण हो जाता है।
बेड की तैयारी :-
दोस्तों तरबूज की खेती के लिए जब बेड आप तैयार कर रहे हों और बेड कुछ इस प्रकार आप तैयार कर सकते हैं कि आपको बेड की चौड़ाई तीन फिट रखनी है और बेड से बेड की दूरी लगभग 5 से 6 फिट आपको रखनी चाहिए। सेंटर से सेंटर की दूरी बेड एक फिट ऊंची रहनी चाहिए।
आमतौर पर, क्यारियां लगभग 3 से 4 फीट चौड़ी होती हैं, जिससे रोपण, सिंचाई और रखरखाव तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। पैदल चलने के रास्तों और उपकरणों चलाने के लिए बेड के बीच पर्याप्त जगह छोड़ें।
बेड तैयार करने के बाद 25 माइक्रोन का मल्चिंग पेपर बिछाए , क्योकि कम दिन की फसल है, अच्छी कमाई कर सकते हैं और कम लागत वाली भी यह फसल है।
खाद का प्रयोग :-
तरबूज की खेती के लिए जब आप बेड तैयार कर रहे हों ,तो उस समय खाद आपको प्रयोग करना है,इसके लिए डीएपी (डाई अमोनियम फास्फेट) 18 :46 को 50 किलोग्राम, एसएसपी (सिंगल सुपर फॉस्फेट) आपको 75 किलोग्राम लेना है हमने देखा है कि तरबूज की फसल में फास्फोरस और पोटेशियम की जितनी ज्यादा आपूर्ति करेंगे।
तो तरबूज की पैदावार में अच्छी बढ़वार होती है ,इसलिए आपको एसएसपी 75 किलोग्राम। प्रति एकड़ के हिसाब से उपयोग करना चाहिए और इसके साथ म्यूरेट ऑफ पोटाश 25 किलोग्राम लेना है। यदि दीमक की समस्या भी है तो रिजेंट जीआर(फिप्रोनिल 0.6% जीआर) दानेदार इंसेक्टिसाइड आपको पांच किलोग्राम लेना है।
पकी हुई गोबर खाद एक दो ट्रॉली इस्तेमाल करें। इन सभी को मिक्स करके बेड के ऊपर दे और बेड तैयार करें।
तरबूज की उन्नत किस्म :-
तरबूज की खेती में सबसे ज्यादा जरूरी है वैरायटी। आप कौन सी वैरायटी का चुनाव करें तो इनके लिए आप टॉप क्लास का उत्पादन देने वाली वैरायटी चुनाव करें। वैसे आज के समय में बाज़ारो में तरबूज की कई किस्म की प्रजातियां देखने को मिल जाती है | तरबूज की बेस्ट किस्म में से मैक्स एफ 1 हाइब्रिड ,नामधारी एन एस -295 ,सिजेंटा शुगर क्वीन,सिजेंटा किंग आदि है।
किन्तु किसान भाइयो को केवल ऐसे उन्नत किस्म के बीजो को ही खरीदना चाहिए, जो तरबूज का अच्छा उत्पादन दे सके | हम यहाँ तरबूज की उन्नत किस्मों के बारे में आपको जानकारी दे रहे है, यदि पसंद आये तो जरूर उपयोग करेंगे ,जो इस प्रकार है:-
तो यह जो किस्में हैं काफी लाजबाब आपको पैदावार दे सकती हैं।
बीज और पौध मात्रा :-
तरबूज की खेती के लिए एक एकड़ में 150 से 200 ग्राम बीज की आवश्यकता पड़ेगी। एक एकड़ में 4000 से 5000 पौधे आपको लगाने चाहिए। इस अनुपात में आप एक एकड़ में पौध रोपण करेंगे तो आपको अच्छा उत्पादन मिलेगा।
नर्सरी तैयार और पौध रोपण :-
प्लास्टिक प्रो ट्रे से नर्सरी तैयार में करें। वैसे भी ठंड के दिनों पर दोस्तों सीड्स जल्दी जमाव नहीं होता है। तो उसके लिए प्लास्टिक ट्रे में आप नर्सरी तैयार कर सकते हैं। नर्सरी तैयार आप प्लास्टिक ट्रे में करें और जब भी आप नर्सरी तैयार कर रहे हैं तो कोकोपीट खाद और नारियल की खाद के साथ आप तैयार करें।
नर्सरी तैयार करते समय फंगी साइट को जरूर मिला लीजिए और 25 दिनों में एकदम आपकी नर्सरी तैयार हो जाएगी तो इसी हिसाब से नर्सरी तैयार करेंगे। नर्सरी में कोई पीलापन की समस्या है तो इसके लिए आप एनपीके 19 :19:19 का स्प्रे कर सकते हैं। फंगी साइड में कार्बेंडाजिम प्लस या मैंकोजेब का आप स्प्रे कर सकते हैं।
जब नर्सरी आपकी तैयार हो जाए तो उसके बाद आपको प्लांटेशन करना चाहिए और प्लास्टिक प्रो ट्रे में यदि आप नर्सरी तैयार करेंगे तो 25 दिन में ही आपकी नर्सरी तैयार हो जाएगी ,तो प्लांटेशन आपको एक पौधे की ही रोपाई करनी चाहिए और पौधे से पौधे की दूरी आपको डेढ़ से दो फिट रखनी चाहिए और लाइन से लाइन की दूरी आपको 5 से 6 फिट आपको रखनी चाहिए। लेकिन ध्यान रखना एक बेड पर सिंगल लाइन पर पौध रोपण आपको करना चाहिए।
पौध रोपण कोशिश करिए कि शाम समय करें और उसके बाद हल्की सी सिंचाई कर दीजिए।
ड्रेंचिंग शेड्यूल :-
तरबूज की पौधों अच्छी बढ़वार ड्रेंचिंग शेड्यूल बहुत ज्यादा जरुरी है। यदि आप वैज्ञानिक तरीके से या आधुनिक तरीके से खेती कर रहे हैं। तो इसके लिए आपके लिए ड्रेंचिंग करना बहुत जरूरी है। ये घुट्टी जैसा काम करती है हमारी फ़सल पर एक अच्छी क्वालिटी और उत्पादन के लिए ड्रेंचिंग जरूर करें।
इसके आप 2 से 3 शेड्यूल बना सकते है और इसे आप अप्लाई कर सकते हैं। पहला ड्रेंचिंग रोपाई के 3 से 4 दिन बाद करें। इसके लिए ह्यूमिक एसिड 500 ग्राम, कार्बेन्डाजिम 50 wp 400 ग्राम और एन.पी.के.19 :19 :19 को एक किलोग्राम एक एकड़ हिसाब से लें और लगभग 200 लीटर पानी में घोलकर पारी पौधा 20 से 25 मिली के हिसाब से ड्रेंचिंग आपको करना चाहिए।
दूसरा ड्रेंचिंग छह से सात दिन का बाद करना चाहिए। इसके लिए आपको माइक्रोनुट्रिएंट 500 ग्राम, एनपीके 12 :61 :0 एक किलोग्राम लेकर 200 लीटर पानी में घोल बनाकर ट्रेंचिंग करना चाहिए। इससे तरबूज के पौधों में बहुत अच्छा बढ़वार और स्वस्थ पौधें होंगे। इससे ना तो कोई फंगस की समस्या होगी।
कीट-व्याधि नियंत्रण :-
इसके बाद एक समस्या आती है फल मक्खी। की तो फल मक्खी हमारे फल पर डंक मारती है तो फल में सड़न की समस्या आ जाती है और काफी ज्यादा क्वालिटी प्रभावित होती है। उपज प्रभावित होती है। तो इसके लिए तरबूज फसल में एक से डेढ़ फीट ऊंचाई पर आपको ट्रैप लगाना है। एक एकड़ में 15 से 20 पीस लगाइए। साथ ही नीला और पीला स्टीक ट्रैप भी लगाइए ताकि थ्रिप्स और सफेद मक्खी आसानी से कंट्रोल हो सके।
कीट नियंत्रण के लिए तरबूज फसल के बीच बीच गेंदे की में दो चार लाइन भी लगा दीजिए तो इससे निमेटोड की समस्या नहीं आएगी। यह आपके लिए प्लस पॉइंट है। तरबूज फसल के बीच में जो गेंदे के पौधे हैं वह ट्रैप की तरह काम करने वाले हैं। तो इन बातों को अवश्य ध्यान रखें।
इसके अतिरिक्त तरबूज फसल पर प्रमुख रूप से एफिड, लाल कद्दू बीटल, माइट्स है, थ्रिप्स है, लीफ माइनर, सफेद मक्खी, फल मक्खी, हरी इल्ली, कटर पिलर और सेमीलूपर का प्रकोप देखने को मिलता है।
खरबूजे की पत्तियों पर फंगल रोग तेजी से बढ़ सकते हैं। जैसे अल्टरनेरिया लीफ स्पॉट, एन्थ्रेक्नोज और स्टेम ब्लाइट पत्तियों पर धब्बे पैदा करते हैं, जबकि स्टेम ब्लाइट भी तनों पर ब्लीच या भूरे रंग के खंड बनाते हैं और फलों पर सड़न पैदा करते हैं।
डाउनी मिल्ड्यू फफूंदी के कारण पत्तियों पर पीले या हल्के हरे रंग के धब्बे बन जाते हैं, जबकि पाउडरी फफूंदी के कारण पत्तियों पर सफेद धब्बे बन जाते हैं। फफूंदनाशकों से फफूंदजनित रोगों का उपचार करें। इसके लिए अपने स्थानीय उद्यान केंद्र या विस्तार सेवा से संपर्क कर सकते है ।
फसल तुड़ाई और भंडारण:-
तरबूज़ फसल में फल आने के बाद आमतौर पर दो सप्ताह में पक जाते हैं। जैसे ही एक तरबूज़ पक जाएगा, बाकी भी पीछे नहीं रहेंगे। तरबूजे के पकने से लगभग एक सप्ताह पहले, बेलों को मुरझाने से बचाने के लिए आवश्यकतानुसार ही पानी दें। पानी रोकने से फलों में शर्करा केंद्रित हो जाती है।
बहुत अधिक पानी देने से मिठास को कम कर देता है। आप तरबूज के पकने का अंदाजा उसके छिलके के रंग से लगा सकते हैं। क्योकि तरबूज पकने के बाद छिलका चमकीले से हल्के हरे रंग में बदल जाता है, और जो हिस्सा मिट्टी को छूता है वह हरे सफेद या भूसे पीले से गहरे, मलाईदार पीले रंग में बदल जाता है।
तरबूज की खेती करने वाले किसान भी तरबूज के पकने का आकलन छिलके को थपथपाकर और धीमी आवाज में सुनकर करते हैं। कुछ ऐसे फल जो पके नहीं हैं, उन पर रैप करके अपने कान को गलत ध्वनि पर ट्यून करें। अधपके फल ऊंची, तीखी ध्वनि के साथ गूंजते हैं।
तरबूज़ 2 से 3 सप्ताह तक बिना प्रशीतित रखे रहेंगे। उनके धारण समय को बढ़ाने के लिए उन्हें ठंडे तहखाने में रखें।